सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कालिदास.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[कालिदास के समय का भारत ।

पल्लां में पूर्योक्त तीनों अयस्थानों के गुणों का एकत्र समा- घेश होता है। इन तीनों अधरपात्रों का इतिहास पाध्या- त्मिक शक्ति का पूरा प्रभाव प्रकट करता है। परन्तु इस चौथी शक्ति का कोई विशेष समय-विभाग नहीं किया जा सफता। प्राचीन भारत के इतिहास में ऐसा कोई समय न था जप केयल आध्यात्मिक शक्ति ही की प्रधानता रही हो।

रामायण में एक प्रादर्श-समाज का चित्र है। इससे, बहुत लोग अनुमान करते हैं कि उसकी कथा यना- वटी है। परन्तु यह अनुमान युक्ति-सङ्गत नहीं। अादर्श - रूप में जन-समाज का परिणत होना रामायण से सावित होता है। किसी कवि में यह सामर्थ्य नहीं देखा गया कि वह इतनी बारीकी और योग्यता से केवल अनुमान द्वारा इतना घड़ा और इतना अच्छा चित्र यना सका हो। ऐसा करने की चेष्टा करनेवाला अवश्य ही कोई न कोई भयानक भूल फर यैटेगा। खैर। इस जगह पाल्मीकि के समय या उनके काव्य की आलोचना करने की आवश्यकता नहीं। हाँ, यहाँ पर, इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि रामायण के उसर-काण्ड में बहुतसी कथायें पीछे से जोड़ी गई मालूम होती हैं। पर घे यासानी से अलग कर दी जा सकती है। याकी का सम्पूर्ण प्रन्य एक ही विद्वान् का बनाया हुया जान

पड़ता है। घटनाक्रम से मालूम होता है कि वाल्मीकि-

१११