पृष्ठ:कालिदास.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कालिदाम।

रामायण की रचना प्याम के महाभारत से पहले की है, और ये का नया महामारत में घर्णन किये गये अन्य लोगों के यदुत पहले विद्यमान थे। किन्तु काव्य की रचना और उममें उलिमित कांविषयों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि याल्मीकि की रचना के ममय मी देश की राजनैतिक और सामाजिक अपमा घेसी ही थी जैसी च्याम के समय में थी। मतलय यह कि यात्मीकि का प्रादुर्भाव उस समय हुया था जिस समय क्षत्रिय-नरेश अपने यल के अभिमान से मेरित होकर अपने मनोऽनुकल नैतिक नियमों का सर्य: प्रचार करना चाहते थे। अतएव उनकी मनमानी राजनीति के विरुद्ध, जिस समय, देश में घोर आदोलन होनेवाल था, व्यास ने महाभारत में जरासन्ध के मुख से उस स्थि का वर्णन कराया है और पाल्मीकि ने राम के मुख से उस बार पार प्रतिवाद कराया है। ये नीति-नियम, बड़े लो के चरित्र-सम्बन्धी नियमों की तरह, धीरता और सचरित्र के सूचक थे। परन्तु पुरुषों की सच्चरित्रता के सम्बन्ध में नियम कुछ कमजोर थे। समाज का नियमन कराने भोर भी इनका मुकाव था। पाल्मीकि का स्वभाव यहुत शुद्ध और धार्मिक था। वे बड़े ही प्रतिमादान और उत्स थे। उन्हें इन नियमों की कमजोरी और उद्दण्डता पर

लगी। यदि चाहते तो, अन्यान्य पुरी और नीति-वि

११२