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कालिदास।]
मालविकाग्निमित्र में सर्पदंशचिकित्सा के विषयमै फयिकुलगुर की उति-
पदो दशस्य दादो का पतस्यारतमोपणम।
एतानि मात्राणामायुप्पाः प्रतिपत्तयः ।
इन अयतरण से सूचित होता है कि कालिदास की इस शास्त्र में भी गति यहुत नहीं तो थोड़ी अवश्य थी
पदार्थ-विज्ञान से परिचय ।
प्रहण के यथार्थ कारण को कालिदास अच्छी तरह जानते थे। इस बात को उन्होंने अपने कार्यों में निःसन्देह रीति से लिखा है। कुमार-सम्भव फे-
हरस्तु विनिमविलुसधैर्यश्चन्द्रोदयारम्भ इवाम्नुराशिः।
इस श्लोक से सूचित होता है कि समुद्र में ज्वारभाटा पाने कर प्राकृतिक कारण भी उन्हें अच्छी तरह मालूम था। ध्रुध-प्रदेश में दीर्घकाल तक रहनेवाले उपः-काल का भी शान उन्हें था। उन्होंने लिखा है-
मेरोठपान्तप्पिर वर्तमाममन्योन्यसंसत्तमहाधियोमम् ।
उनके उपः-काल-सम्बन्धी ज्ञान का यह हद
प्रमाण है। सूर्य की उष्णता से पानी माफ वनकर उड़
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