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पृष्ठ:कालिदास.djvu/१४९

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[ कालिदास की विद्वत्ता।

जाता है। यही घरसता है। इस पात को भी घे जानते थे। कुमार-सम्भव का चौथा सर्ग इस यात की गवाही रविपीतनहा तपारपये पुनरोघेन हि युज्यते मदी। रघुवंश के- सहत्रगुणमुत्सृप्टमादत्तेदि रस रविः । इस पार्द्ध से भी यही यात सिद्ध होती है। "अयस्कान्तेन लोहवस्"-लिखकर उन्होंने यह सूचना दी है कि हम चुम्बफ के गुणों से भी अनभित्र नहीं ।

राजनीति-ज्ञान ।

इस विषय में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नही। रघुवंश में राजाओं ही का वर्णन है। उसमें ऐसी सैफड़ों उक्तियाँ हैं जो इस बात की घोषणा दे रही हैं कि कालिदास यष्टुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। राजा किसे कहते है, उसका सबसे प्रधान धर्म या कर्तव्य क्या है, प्रजा के साथ उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए-इन बातों को कालिदास जैसा समभते थे, वैसा शायद आजकल के घड़े से भी बड़े राजा और गजनीतिनिपुण अधिकारी न समझते

छोगे। कालिदास की-सा पिता पितरस्तासां केवलं

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