पृष्ठ:कालिदास.djvu/१८३

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[कालिदास के मेघदूत का रहस्य ।

करना कठिन मही। ऐसा मंमी यदि दो-चार दिन के लिए महीं, किन्तु पूरे साल भर के लिए, अपनी मयसी से सैकड़ों कोस दूर फेंक दिया जाय तो उसकी विरह-व्याकुलता की मात्रा पहुत ही पढ़ जायगी, इसमें कोई सन्देह महीं। ऐसे मी का वियोग-ताप पर्या में और भी अधिक मीपणता धारण करता है। उस समय यह उसे प्रायः पागल पना देता है। उसके प्रेम की परीक्षा उसी समय होती है। उसी समय इस बात का निधप किया जा सकता है कि इस ममी का मेम कैसा है और यह अपनी प्रेयसी को कितना चाहता है। कालिदास ने इस काव्य में आदर्श-प्रेम का चित्र खींचा है। उस चित्र को सविशेष यहारी और पधार्यता-व्यञ्जक करने के लिए यक्ष को नायक पनाकर कालिदास ने अपने कधि-कौशल को पराकाष्ठा कर दी है। अतएष भाप यह न समझिए कि कपि ने योही, बिना किसी कारण के, विप्रयोग-हार धर्षन करने के लिए, यक्ष का शाश्रय लिया है।

विषय-यासनाओं की तृप्ति के लिए ही जिस प्रेम की उत्पत्ति होती है यह नीच प्रेम है। पह निन्दय और दूषित समझा जाता है। नियोज मेम अवान्तर थातों की कुछ भी परया नहीं करता। प्रेम-पथ से प्रयाण करते

समय आईईईयाघाओं को यह कुछ नहीं समझता। विमा

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