पृष्ठ:कालिदास.djvu/२२१

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[कालिदास की कविता में चित्र बनाने योग्य स्थल ।

तरङ्गाय लि उठी होगी उसे यदि कोई निपुण चित्रकार चाहे तो चित्र-वारा व्यक्त कर सकता है।

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कालिदास के अभिमान शाकुन्तल के प्राधार पर फाई चित्र बन चुके हैं। यह नाटक इतना अच्छा है कि इसका श्राश्रय लेकर दस-घोस उत्तमोत्तम चित्र बनाये जा सकते है। साधारण चित्र कितने यन सकते हैं, इसकी तो गिनती ही नहीं। इसके दूसरे प्रङ्क में राजा दुप्यन्त और विदूपक में शकुन्तला-सम्बधिनी यातचीत है । राजा ने शकुन्तला. विषयक अपना अनुराग और अपने विषय में शकुन्तला फा भावोदय वर्णन किया है । मैं ही उसपर अनुरत नहीं, शकुन्तला भी मुझ पर अनुरक्त है-यह दिखाने के लिए राजा कहता है।-

दर्भातरेण चरण पत इत्यकार

तन्धी स्थिता कतिचि पदानि गत्या

पासीनिवृत्तवदना च विमोचयन्ती

शायासु वल्कलमसक्तमपि दुमाणाम् ॥

नपोवन में दुष्यन्त से साक्षात् होने के बाद जब शकुन्तला अपने आश्रम की ओर, दुष्यन्त को छोड़कर, चली तय उसकी दोनों सखियाँ-प्रियंवदा और अनुसूया-तो कुछ आगे बढ़ गई; यह पीछे रह गई । उस समय उसने

किया का, यह इस पद्य में कालिदास ने राजा के मुख से

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