पृष्ठ:कालिदास.djvu/२६

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कालिदास। अमितान-पानल में मदरकाल-महाद उम्प विशेर में, विक्रमादित्य के सामने, घेल पदिपेरामाभित थे तो इस नाटक को उन्होंने भी दाता को पशेन समर्पण किया? खैर अमी यहुन बुध कहना है। फालिदास के स्पिति-काल के विषय में भिप-भिन्न, विद्वानों में भिन्न-भिन्न, न मालूम । प्रकाशित किये हैं। उनमें से कौन ठीक है, के इसका निर्णय करना बहुत कठिन है। सम्भव से एफ मी ठीक न हो। तथापि उनमें से दो-च मुख्य मतों का उल्लेख करना हम यहाँ पर उचित स सर विलियम जोन्स और डाक्टर पौदर्सन है कि कालिदास ईसवी सन के ५७ वर्ष पूर्ष, नरेश महाराज विममादित्य के सभापरिडत थे। पण्डित नन्दर्गीकर का भी यही मत है और इस उन्होंने बड़ी ही योग्यता और युक्ति पूर्ण कल्पना किया है। अश्वघोष ईसा की पहली शताप्दी में थे। उनके दुख-चरित नामक महाकाय से अनेक देकर नन्दकिर ने यह सिद्ध किया है कि कालि कायों को देखकर अश्वधोप ने अपना काम बना कि उसमें कालिदास के कामों के पद ही नहीं, कि-