पृष्ठ:कालिदास.djvu/२७

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जिमिदामा प्राधिमांग-पाल। मंग(१)में दिशा गुर। टाटर पेपर, मागन, शेफाची. मानिया विलि- यामधारमी०एच्. शनीचा मन कि पालिदास माद दमो शक में लेकर पौधशार के पार में विधमान छ। उनके पास एमके पहले केमदी हो सपने। उनकी माग चौर स्नायन-विषय धादिमे यदी पात मिदोती है। परममाह की रची जीवपिता एक शिला RT उनी दुई, माम हुई है उममें मालय-संपत् ५२४, अर्थात् १७३ ईसी, मनिहै। यह कविता कालिदास ही रविता में मिलनी-सुलती है। अतएव प्रसारक मुग्धानलाचार्य का अनुमान है कि कालिदास सा की पांचों शताब्दी के कवि है। विन्सेंट स्मिथ साय मी कालिदास को इतना ही पुराना मानते है, अधिक नहीं। हाश्टर माऊ दाजीने पहुत कुछ भयनि न मयति करने के बाद यह अनुमान किया है कि उज्जैन के अधीश्वर हर्ष-विममादित्य के द्वारा फारमीर पर शामन करने के लिए भेजे गये मातृगुप्त दी का दूसरा नाम कालिदास था। अतपय उनका स्थिति-काल पठी सदी है। दक्षिण के श्रीयुत परिष्कृत के० पी० पाठक ने भी कालिदाम का यही समय निश्चित किया है। डायटर पलीद, साफ्टर फगुंसन, मिस्टर पार० सी० दस और परिइत प्रसाद शास्त्री भी इसी निधय या अनुमान के पृष्ट-पोषक है। इसी तरह और भी कितने ही विद्वानों ने