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पृष्ठ:कालिदास.djvu/२८

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कालिदास। कालिदास के विषय में लेख लिखे हैं और अपनी अपनी सर्कना के अनुसार अपना अपना नियय, सर्यसाधारण के सम्मुख, रपया है। कालिदास के समय के विषय में कोई ऐतिहासक थाधार तो है नहीं। उनके कार्यों की भाषा प्रणाली, उनमें जिन ऐतिहासक पुरुषों का उल्लेख है उनके स्थिति-समय और जिन परयी फरियों ने कालिदास के प्रन्यों के हवाले या उनसे अवतरण दिये हैं उनके जीवनकाल के आधार पर ही फालिदास के समय का निर्णय विद्वानों को करना पड़ता है। इसमें अनुमान हो को मात्रा अधिक रहती है। अतरव जवतक और कोई पका प्रमाण नहीं मिलता, अथवा जबतक किसी का अनुमान औरों से अधिक युक्तिसङ्गत नहीं होता, तयतफ विद्वज्जन इस तरह के अनुमानों से भी तथ्य संग्रह करना अनुचित नहीं समझते। दो-तीन वर्ष पहले, विशेष करके १६०E ईसवी में, लन्दन की रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में डाक्टर हार्नले, मिस्टर विन्सेंट स्मिथ आदि कई विद्वानों ने कालि- दास के स्थितिकाल के सम्बन्ध में कई यड़े ही गवेषणा-पूर्ण लेख लिखे। इन लेखों में कुछ नई युक्तियाँ दिखाई गई। डाक्टर हार्नले प्रादि ने, और और धातों के सिवा, रघुवंश से कुछ पथ ऐसे उद्धत किये जिनमें 'स्कन्द', 'कुमार', 'समुद्र नादि शब्द पाये जाते हैं। यथा-