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पृष्ठ:कालिदास.djvu/२९

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[कालिदास का श्राविर्भाय-काल । (१) यासमुद्रक्षितोशाना- (२) प्राकुमार कयोद्धातं- (३) स्कन्देन साक्षादिव देवसेना- यहाँ 'स्कन्द' से उन्होंने स्कन्दगुप्त, 'कुमार से कुमारगुप्त और समुद्र से समुद्रगुप्त का भी अर्थ निकाला। उन्होंने कहा कि ये शिलए पद है, अतपय इयर्थिक हैं। इनसे दोन्दो अर्थ निकलते हैं। एक तो साधारण, दूसरा असा- घारण, जो गुप्त राजाओं का सूचक है। इस पर एक बङ्गाली विद्वान् ने इन लोगों की घड़ी हँसी उड़ाई। उन्होंने दिखलाया कि यदि इस तरह के दो-दो अर्थयाले श्लोक हूँढे आयें तो ऐसे और भी कितने ही शब्द और श्लोक मिल सकते हैं। परन्तु उनके दूसरे अर्थ की कोई सङ्गति नहीं हो सकती। हम यह लेख देहात में बैठे हुए लिख रहे हैं। पशियाटिक सोसायटी के जर्नल के वे अङ्क हमारे पास यहाँ नहीं। इस कारण हम उक्त लेखक के कारिफ्रम के उदाहरण नहीं दे सकते। जय से हानले श्रादि ने यह नई युकि निकाली तय से कालिदास के स्थिति-काल-निर्णायक लेखों का तूफान सा आ गया है। लोग आकाश-पाताल एक कर रहे हैं। कोई कहता है कि कालिदास द्वितीय चन्द्रगुप्त के समय में थे, कोई कहता है, कुमारगुप्त के समय में थे; कोई कहता है, स्कन्दगुप्त के समय में थे, कोई कहता है, यशोधर्मन् विक्रमा. २३ २५१