कालिदास का आविर्भाव-काला के छठे शतक के पहले के नहीं। कालिदास ने कुमारसम्भव में जो लिया है- त्वामामनन्ति प्रशाति पुरुषार्थप्रवर्तिनीम् । सदर्शिनमुदासीनं त्यामेव पुरयं विदुः ॥ यह सांख्य-शास्त्र का सारांश है। जान पड़ता है कि उसे कालिदास ने वर-प्ण के अन्य को अच्छी तरह देखने के याद लिया है। दोनों की भाषा में भी समानता है और सांख्यतत्व-निदर्शन में भी । इस यात की पुष्टि में चैटजी महाशय ने रघुवंश के तेरहये सर्ग का एक पद्य, और रघुवंश तथा कुमारसम्भय में व्यवहत "संघात" शब्द भी दिया है। सापकी राय है कि संघात शन भी कालिदास को ईयर-एप्प ही के प्रन्य से मिला है। यहाँ पर यह शहा हो सकती है कि ईसा के छठे हो शतक में भ्यागुष्ण मी दुप और कालिदास भी। फिर किस तरह अपने समकालीन परिहत की पुस्तक का परिशीलन करके कालिदास ने उसके सत्य अपने कामों में निहित किये। परामालम, यरहप्त पटी सदी में कब हुए और फर्श हुए। यदि यह मान भी लिया जाय कि कालिदास एठीही सदी में थे तो भी इसका पग प्रमाए कि वर-गृपा से दस पोस-4 पहले ही लोकान्तरित नहीं हुए। इसका भी पराममाय कि यर- कृष्ण की पारिकामों के पहले सांस्य का और कोई अन्य