पृष्ठ:कालिदास.djvu/९६

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रायमर ने अपना ही है। किला था। यहतों के नाम कालिदास । गजनरहिगी से जाना जाता है कि महाराज दिन क्रमादित्य ने काली का राज्य अपने मित्र कशि मानुगुप्त नामक पा मालए को, पुरस्कार में, दिया था। बहुतों मनसे यह माद्रगुप्त कालिदास ही है। किन्तु जय हम देखते हैं कि रायपमह ने अपनी शकुन्तला की टीका में मातृगुप्त नामक एक कवि का उल्लेख किया है और उसके पनाये हुए अभि- नव-भारती नामक अन्य का भी नाम लिखा है तब यह मत एकदम दिनमूल हो जाता है। राघवमट्ट ने तो कहीं सं- कत से भी यह नहीं दिखाना चाहा कि मातृगुप्त और काहि दास एफही थे। प्रस्तु। हमारे कवि-कुल-शिरोमरि का चाहे जो नाम रहा हो, चाहे वे जहाँ पैदा हुए हों, पर जर तक उनके लिखे हुए अमर प्रत्य-समूह यने रहेंगे और जब तक संस्एत-साहित्य इस संसार में जीता रहेगा तब तक हम उन- के विषय में निरन्तर कहते ही रहेंगे- पुप्पेषु जाती नगरपु काची नदीपु गला कवि कालिदासः। जनवरी १ कालिदास के विषय में अब जाकर एक हुई है। इस पोज का वर्णन एक महाश्य'