पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२५२

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काव्य-निर्णय २१७ नुहुति कही जाती है । अपन्हुति में निषेध कहीं पहिले कर अन्य का आरोप किया जाता है और कहीं पहिले आरोप कर पीछे निषेध किया जाता है। दास जी ने ऊपर लिखे गये तीन दोहों में उनका लक्षण लक्षितकर पुनः चौथे दोहे में अपन्हुति को "शुद्धधर्मा", "हेत्वा" "पर्यस्त" "भ्रांत्य" "छेक" और "कैतव" नाम से छह प्रकार का कहा है। ___ संस्कृत- अलंकाराचार्यों ने अपन्हुति के प्रथम 'शब्दी' और 'श्रार्थी' विभेदकर पुनः इन्हें 'निरवपवा' और 'सावयवा' मानकर 'हे त्वापन्हुति', 'पर्यस्ताफ- न्हुति' तथा 'भ्रांत्यापन्हुति' (भ्रांतापन्हुति ) के वाद सावयवा श्रार्थी के अंतर्गत 'छेकापन्हुति' का वर्णन करते हुए पर्यस्तापन्हुति के 'हेतुपर्यास्तापन्हुति' 'शुद्धा' तथा भ्रांत्याप हुति के "संभव भ्रांतापन्हुति" कल्पित भ्रांतापन्हुति रूप दो भेद करते हुए छेकापन्हुति के भी 'शुद्धा' और 'श्लेष-गर्भादि' भेद किये हैं । अतएव जब "अारोप में से धर्म (उपमेय) को छिपा लिया जाय-उसका निषेध कर दिया जाय, तब धर्म वा शुद्धापन्हुति कही जाती है, जैसा कि दास जी के प्रथम- उदाहरण रूप- 'चौहरे चौक०...' में वर्णित है। हेत्वापन्हुति उसे कहते हैं, "जब कारण-सहित उपमेय का निषेध कर उपमान की स्थापना की जाय, अर्थात् जिसमें अपन्हव (निषेध ) करने का हेतु साथ-साथ दिखा दिया जाय । अथवा शुद्धापन्हुति में कारण दिखलाये जाने पर उक्त अपन्हुति कही जायगी। उदाहरण, यथा- ___ 'अरी घुमरि घरात घुन, चपला चमक न जाँन ।' और जब प्रकृत वस्तु के धर्म का अप्रकृत वस्तु के धर्म पर आरोप करते हुए प्रकृत वस्तु का निषेध किया जाय, अथवा किसी अन्य वस्तु के धर्म का आरोप करने के लिये दूसरी वस्तु के धर्म का निषेध किया जाय तब "पर्यस्तापन्हुति" कही जाती है। इसी प्रकार "भ्रांतापन्हुति' भी जब सत्य बात प्रकट करके किसी की शंका दूर की जाय--किसी के भ्रम को दूर करते हुए अपन्हव किया जाय, असत्य का सत्य बतलाया जाय, तब होती है । उदाहरण, यथा- ___ भाँनन है, अरविंद न फूले, भली-गन भूलें कहा महरात हो।" और स्वकथित अपने गुप्त रहस्य को किसी प्रकार प्रफट होते जानकर ( यदि) उसे मिथ्या-समाधान-द्वारा छिपा दिया जाय-युक्ति पूर्वक किसी दूसरे व्यक्ति से अपनी बात छिपा लो जाय, वहाँ 'छेकापन्हुति' कहते हैं। छेक का अर्थ है-- "चातुर्य'। अस्तु सत्य, पर गोपनीय बात को कहकर उसे श्लेष से, वा अन्य प्रकार से युक्ति-पूर्ण असत्य के द्वारा चातुर्य से छिपा लिया जाय, तब वहाँ उक्त अपन्हुति होती है । भ्रांतापन्हुति में असर कहकर भ्रम दूर किया जाता है तथा