पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२८२

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काव्य-निर्णय २४७ कमल-संपुटादि का आरोप है, उनके साथ सनों का विलक्षण वैधयं दिखा कर ( जो ) विरोध दिखलाया या बताया गया है, वे सभी आरोप प्रायः विरोध की-ही पुष्टि करते हैं, इसलिये यहाँ ( दासजी के इस छंद में ) "न्यूनतद्र प (हीन अभेद ) रूपक नहीं है, अपितु विरोधालंकार प्रधान है।" लाला भगवान दीन ने भी "सूक्ति-सरोवर" ( २७७, ३४ ) में दासजी के इस छंद की व्याख्या करते हुए पोद्दारजो के कथन की-ही पुष्टि कर लिखा है-"उक्ति तो सुदर है ही, विरोधाभास अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।" दासजी ने भी इमका 'तिलक' करते हुए व्यतिरेक और रूपक का संकर माना है। ____"सुदरी तिलक" के संग्रह-कर्ती भारतेंदुजी ने, “सुदरी-सर्वस्व," "नख- सिख-हजारा" और "सूक्ति-सरोवर" के संग्रहकर्ताओं वा रचयितानों पं० मन्नालाल, परमानंद सुहाने तथा ला० भगवानदीन ने 'दासजी के इस छंद को नायिका के नख-सिख वर्णन के अंतर्गत "स्तन-वर्णन" में संकलित किया है। इसी प्रकार "मनोज-मंजरी" के संग्रहकर्ता “अजान कवि" ने “दूती पट-कमांतर्गत"-निंदा" में तथा "रस-कुसुमाकर" के रचयिता अयोधा नरेश ददुश्रा साहिब ने "मुग्धा- स्वाधीन पतिका" के उदाहरणों में संकलित किया है। दूती-षटकांतर्गत- "निंदा", यथा- "प्रस्तुति औ निंदा, बिन, बिरह निबेदन भाइ। भौ परबोध मिलाइयो, दूती जान सुभाइ ।" कविवर 'रसलोन' ने निंदा-'नायिका की निंदा' और 'नायक की निंदा' दो भेदकर सुदर उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। जैसे नायिका-निंदा- "कहा आपने रूप की, फूलि कहि रही हाल । तोहू ते अति आगरी, नगर नागरी बाल ॥" और नायक-निंदा, यथा -- "सीस मुकट, कटि काछिनी, फाटी-साटी हाथ । मिलन चहत या रूप सों, राधा जू के साथ ॥" एवं स्वाधीन-पतिका', यथा- "जा तिय के भाधीन है, पीतम रहै हमेस । स्वाधीन पतिका नायिका, भाँखत कला-असेस ॥" -म० मं० (प.) इस स्वाधीन-पतिका विभेद को ब्रजभाषा-रीति श्राचार्यों ने मुग्धा, मध्या प्रौढ़ा, परकीया और गणिका (सामान्य) में भी मान सुंदर उदाहरण प्रस्तुत