पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३२६

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काव्य-निर्णय

काव्य-निर्णय २२१ प्रथम उदात्त को उदाहरन जथा- जगत-जनक बरनों कहा, जनक-देस को ठाठ । सहेल-मैहेल हीरन बने, हाट, बाट, करहाट ॥ दूसरी उदात्त बड़ेन को उपलच्छन जथा- भूषित-संभु-स्वयंभु-सिर, जिनके पग की धूर । हठिकर पाँइ मँवाबती,' तिन सों तिय मगरूर ॥ वि०--'उदात्त अलंकार के उदाहरण रूप 'रसखाँन' और कवि लच्छीराम के छंद भी सुदर हैं, यथा-- "ब्रह्म मैं इब्यौ पुरॉनन-बेर्दैन, छद सैंने चित चौगुने चायन । देख्यौ-सुन्यों न कबों-कित-हैं, वो कैसौ सरूप, भौ कैसे सुभायन ॥ हेरत-हेरत हारि गयो, 'रसखाँन' बतायौ न लोग-लुगायन । देख्यौ महा, वो कुंज-कुटीर में, बैठ्यौ पलोटत राधिका-पायन ॥" "जा मैहमाँ को सँवारें विरंच, महेस हू बेद न ब्रह्म-विचारौ। सारद, नारद, सेस, गँनेस, सुरेस-हु को मन हेरत हारौ ॥ मानस-मंजु मुनीसन के, 'लछिराम' मराल सरूप सँवारौ । ता हरिकों गुजरेटी कहैं, मिल्यौ कॉमरी बारी अहोर को बारौ ॥ पुनः उदाहरन जथा- महाबीर पृथवी-पति-दल के चलत, ____ढलकत बैजंती खलकत जो सुरेस फौ। 'दास' कहै बलकत महाबल-धीरन कौ, धलकत* उर में महीप देस-देस कौ ॥ फलकत बाजिंन के भूरि धूरि-धारा उठे, तारा ऐसौ झलकत (जु) मंडल दिनेस को । थलकत भूमि, हलकत भूमिधर, छलकत सातों सिंध (भौ)दलकत फँन सेस कौ ॥ पा०-१. ( में० ) वावती... | २. ( सं० पु० प्र०) ( का० ) (३०) बैजयंत...। ३. (का०) (३०) ज्यों...। (रा० पु० प्र०) यो...। ४. (३०) बलबीरन के । (सं० पु. प्र.) बलकत बल पहावीरन के...। ५. (प्र०) 'परकन...। ६. (प्र०) पारन...। ७. (१०) पर...।