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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३४१

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काव्य-निर्णय "अस्य-तिलक- इहाँ है अंग की सुकमारता (ओ) पोइ की ललाई प्रस्तुत हैं, पर अप्रस्तुत- रूप सों कही है। वि०-"कुछ ऐसी ही बात “कविवर विहारीलाल" दूसरी तरह से कहते हुए एड़ी का वर्णन करते है, यथा- "कौहर-सी 'एबीन' की, लाली निरखि सुभाइ । पाँइ महाबर देहि को, भाप भई बे पाँइ ।। अथवा- पाँइ महाबर देंन कों, नॉइन बैठी आइ। फिरि-फिरि जाँनि महाबरी, एडी-मीजति जाइ ॥" और 'पग बॉम है भारी' पर किसी शायर का नीचे लिखा शेर कोई और ही संदेश दे रहा है -कुछ और ही गूढार्थ बता रहा है, जैसे- "सोच इसका न होगा मुझको, तो फिर किसको हो। जानती तू नहीं क्या..',पाँव है भारी अन्ना ॥" पुनः उदाहरन जथा-- सिंघनी औ मृगनी की ता ढिंग जिकर कहा, ____बार औ' मुरार-हू ते खींनी चित्त धरि तू । दूरि-हीं ते' नेसुकि नजर-भर पाबत-हो, लचकि-लचकि जात जी में ग्याँन करि तू ॥ तेरौ परमॉन परमॉन को प्रमाँन है, पै 'दास' कहे गरुआई आपनी सँभरि तू । तू तो मैंन है रे", वौ निपट ही तन है रे, लंक पै दौरत कलंक सों तो डरि तू॥ * अस्य तिलक इहाँ हू छीन कटि-बरनन के सग भारी मन को, वा पै दौरिबी ललचाइयो दोऊ अप्रस्तुत होत-हू प्रस्तुत रूप सों बरनन हैं। पा०-१.(का०) (३०)(प्र०) बार-हू" । (न० सि० ह०) मार हू" | २. (न० सि० ह० ) सों... । ३. ( का० ) (३०)(प्र०) खीन... । ४. (न० सि००) सो:"। ५.1 (३०) भाव... । (प्र.) भार" । ६. (का०) (३०)(प्र.) के। ७..प्र.)री" | .(प्र०)री" | ... * ० नि० (भि० दा० ) ११,३५ । न० सिं० १० (१० सु०) ५० २२,१५ ।। ०स० ( म० दी०) २६६,२३ ।