काव्यनिर्णय शब्द के दो अर्थों को ध्यान में रख 'ध्यानस्तुति' और 'व्याजनिंदा' नाम से दो पृथक्-पृथक् अलकारों को मान दिया है। यों तो इन ब्रजभाषा के प्राचार्यों में ऊपर लिखे (व्याज-स्तुति और व्याज-निंदा) भेदों के प्रति मतभेद है, अर्थात् कोई इन्हें प्रथक-प्रथक और कोई एकत्रित रूप से मानते हैं, जो उचित प्रतीत नहीं होते । ब्रजभाषा-अाचार्यों ने इस व्याज-स्तुति के उपयुक्त दो ही भेद नहीं, . अन्य दो भेद-एक की निंदा से दूसरे की स्तुति ( और की निंदा से दूसरे की स्तुति) और एक की स्तुति से दूसरे को निंदा ( और की स्तुति से दूसरे की निंदा) और माने हैं, पर संस्कृताचार्यों ने इन्हे 'व्यंग्य-काव्य' कहा है, अलंकार- भेद नहीं । ब्रजभाषा-काव्य में इन सबके उदाहरण दिये गये हैं। दास जी ने इन-“एक की निंदा-स्तुति से दूसरे की निंदा-स्तुति" रूप भेद नहीं माने हैं, अपितु इनके स्थान पर "स्तुति के व्याज से स्तुति" और "निंदा के व्याज से निंदादि भेदों का उल्लेख करते हुए दोनों के उदाहरण दिए, हैं। भानु ("जगन्नाथप्रसाद भानु-"काव्य-प्रभाकर) ने व्याजस्तुति के-"उसी की निंदा से उसी की स्तुति, उसी को स्तुति से उसी की निंदा, और की निंदा से और की निंदा, और की स्तुति से और की स्तुति, और की निंदा से और की स्तुति", तथा "और की स्तुति से और की निदा" श्रादि छह भेद माने हैं।" ब्याजस्तुति भेद-लच्छन जथा- स्तुति-निंदा के ब्याज कहुँ, कहुँ निंदा स्तुति-ब्याज । स्तुति-अस्तुति' के ब्याज कहुँ, निंदा-निंदा साज ।। अथ निंदा-ब्याजस्तुति को उदाहरन जथा- भौर-भोर तँन भँननाती मधु-माँखी-सम, कॉनन-लों फाटो' फाटी पाखें बँधी लाज की। ब्यालिनी सी बेनी, खीन लंक, बल-हीन सम, लीन होत संक-नहि भूषन समाज की। 'दास' पर-चित्तन के चोर ठहराए- उरलॅन पाई पदबी कठोर सिरताज की। . पा०-१. (का०) निंदा-स्तुति की ग्याज। (३०) (प्र०) निंदा. स्तुति के व्याज । २. (रा. पु० प्र०)-प्रस्तुति व्याजै कहूँ...। ३. (का०)(का० ) फाटि-फाटि आँखी.... ४. (३०) आँखीं...! ५. (का०) (प्र०) ग्यालिनि...। (रा० पु० का० ) . व्याली...! ६. (३०) होती.....७. ( का० )(३०) सकल-हि...| R. (का०)-चित्त.ह की ठहराई उरजैन...1 ६. (३०) की चोर ठहरई, उर जान पाई.... (प्र०) दास चित्त-चोर ठहरायो उजैन लग पाई तब पदवी...। ।
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