पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३६३

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३२८ काम्य-निर्णय पुनः उदाहरन जथा- पंन को पग होत', अंधेन'को सा-मग, ____एकै जाँन है के जग कोरति चलाई है। बिरचै' बिताँन बैजयंती बारि गहै थाहें, बास-सी बिलासो बिस्व-विदित बड़ाई है। छाया करै जग कों, थहाया करै ऊँच-नीच, पाइ जिहिं बंसँन में बढ़त सदाँई है। कॉन्ह-मुख लागि करै करम-कसान को, वाही बंस बाँसुरो जनम-जरी" जाई है ।।* वि०-"जो पंगुश्रा (लगड़ों) को पैर, अंधों को मार्ग-प्रदर्शन का-किसी सवारी का काम देकर जग में कीर्ति फैलाए। जिससे लोग वितान (पाल-तंबू) और पताकाएँ तानते हैं, गहरे पानी को थाह लगाने हैं, करड़े सुखाने की अरगनी बनाते हैं, जो छप्पर में बँध कर छाया और ऊंचे-नीचे मार्ग में सहारा देता है, ऐसे वंश में पैदा होकर ये “जनम-जरा श्रीकृ ण के मुंह-लगकर कसाई का कार्य करती है, इत्यादि ..। यह जाति से क्रिया-विरुद्ध का सुदर उदाहरण है।" अथ तृतीय विरुद्ध जाति सों द्रव्य को उदाहरन जथा- चंद कलंकित जिन कियौ, कियौ सकंट मृनार । वहे बुधन बिरही करें, अबबेकी करतार ॥ अथ चतुर्थ बिरुद्ध गुन सों गँन को उदाहरन जथा- प्रिया, फेरि कहि वैस-हीं, करि बिय' लोचन लोल । मोहि निपट मीठे लगें, ए तेरे" कटु बोल ॥ अथ पंचम बिरुद्ध क्रिया सों क्रिया को उदाहरन जथा- सिब साहिब अचरज भरयौ, सकल राबरौ मंग। क्यों कॉमें जारयौ, कियो क्यों काँमिनि भरधंग। पा०-१. (३०) होते...1 २. (का०) (वे.) (प्र०) अर्धेन .. ३ (वे०) विरचौ ..। ४. (का०) (३०) (सू० स०) ऊँचौ-नीची पाया। ५. (का०) बस में यों बढ़त...। (वे.) बस के मे बढ़त...। (प्र०) पाई जेहि बस में यों बढ़ती सुहाई है। ६. (वे.) लागी...। ७. (३०)(सू० स०) जरी...। . ( वे०) मृनाल ... ६. (३०) करताल...। १०.( का०) विवि...।११. (का०)(प्र.) (सं० पु० प्र०) तेरी...। (३०) तेरौ...(का०) (३०) (प्र०) (स० पु० प्र०) मीठी लगै, यह बेरी-तेरो..1

  • सू० स० (ला० भ० दी०) पृ० ५४ | + भा० भू० (केरिया) ५० २१७.