पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४१९

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काव्य-निर्णय गहरी दृष्टि से निरखते-परखते हुए उन्हे एक ही पंक्ति में प्रस्तुत किया है। किंतु उनके श्राधार-भूत कहे जाने वाले मम्मट-कृत काव्य-प्रकाश (संस्कृत) मथ में उक्त 'उल्लासादि' अलकार के साथ अस्तव्यस्त ( इधर-उधर ) रूप में सज्जित किया है -अन्यान्य-अलंकारों के श्रागे-पोछे “मीलित, सामान्य, विशेष, विशेष के भेद, तद्गुण" और "अतद्गुण' का उल्लेख किया है। काव्य-प्रकाश-मान्य 'मीलित' रुद्रट के 'पिहित' का सुंदर रूपांतर है। रुद्रट-कृत पिहित का लक्षण इस प्रकार है- “यत्रातिप्रबलतया गुणः समानाधिकरणमसमानम् । अर्थातरपिदध्यादाविर्भूतमपि तत् 'पिहितम् ॥ जिसे मम्मट ने मौलित में मंडित करते हुए- "समेन लचमणा वस्तु वस्तुना यनिगून ते । निजेनागतुना वापि तन्मीलितमिति स्मृतम् ॥" रूप में अपनाया है। अस्तु, यहाँ अाप-द्वारा कथित-'समेनलक्ष्मणा' और 'निजेनगंतुना'-दि शब्दों का अभिप्राय है-“साधारण लक्षण वा चिन्ह-द्वारा, और इस चिन्ह के सहज-स्वाभाविक रूप वा नैमिक्तिक श्रागंतुक होने का । अतः जहां किसी के द्वारा किसी वस्तु से उसके स्वभावतः प्रबल होने के कारण किसी दूसरी के तिरोहित होने का वर्णन किये जाने पर जो वहाँ अलंकार कहा जायगा उसका नाम-मोलित है, और यह दो प्रकार का है-१, स्वाभाविक और २, नैमि- क्तिक चिन्ह निगूहन तिरोधान) रूप में । रुय्यक की भो यही संमति है, यथा- "वस्तुना वस्त्वंतरनिगूहनं मीलितम् ।" __ इस प्रकार मम्मट-मान्य-सामान्य, विशेष, तद्गुण और अतद्गुण के लक्षण इनकी परिभाषा, रुद्रट-रुय्यक-जन्य का विकाश ही कहा जा सकता है। केवल तद्गुण के प्रति इतना अधिक कहा जा सकता है कि "मम्मट-मान्य तद्गुण लक्षण रुद्रट-लक्षण से प्रतिभाषितातो अवश्य है, किंतु लक्षण पर नहीं, विश्लेषण- विशिष्ट पर आधारित है-इसे हो उन्होंने स्वीकार किया है, जो इस प्रकार है- "असमान गुणं यस्मिन्नतिवहुलगुणेन वस्तुना वस्तु । संसृष्टं तद्गुणतां धरतेऽन्यस्तद् गुणः स इति ।" और अतद्गुण-तद्गुण का विपर्यय है ही, अस्तु मम्माटाचार्य ने उसे लक्षण-उदाहरण-सहित अपना लिया है-तद्वद् उद्धृत किया है। "इति श्री सकल कलाधरकलाधरवंसावतंस भी मन्महाराज-कुमार श्री वाव हिंदूपति विरचिते काम्य-निरनए उक्लासालंकार- गुन-दोषादि वरनन नाम चतुरवसोवासः।"