पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५४८

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काव्य-निर्णय वर्णन होता है। यहाँ क्रमशः शब्द "विशेष" अलंकार से पृथक्ता-प्रदर्शन का द्योतक है, क्योंकि वहाँ (विशेष में ) भी एक ही काल में अनेक स्थानों पर वस्तु स्थिति का वर्णन किया जाता है, जो क्रमशः ( उत्तरोत्तर) नहीं होती। अतएव संस्कृत-अलंकाराचार्यों ने 'पर्याय' के प्रथम और द्वितीय नाम से दो भेद माने हैं। प्रथम पर्याय वहाँ, जहाँ-"एक वस्तु की क्रमशः अनेक प्राश्रयों में स्वतः स्थिति हो या अन्य-द्वारा की बाय' और द्वितीय 'पर्याय' वहाँ “जहाँ अनेक वस्तुओं की एक श्राधार में क्रमशः स्वतः स्थिति हो वा किसी के द्वारा की जाय। इसके बाद इन प्राचार्यों ने इन दोनों पर्यायों के "स्वतः स्थिति" और "अन्य-द्वारा स्थिति" किये जाने पर दो-दो भेद और माने हैं। पर यहाँ यह ध्यान रहे कि पर्यायालंकार वहीं होता है जहाँ एक आधार का संबंध नष्ट होकर उसकी दूसरे अाधार में स्थिति होता हो, सम-भाव से एक काल में विविध श्राधारों में स्थिति न हो...। जैसा काव्य-प्रकाश में मम्मटाचार्या ने उदाहरण दिया है, यथा-- "विबोष्ठ एवं रागस्ते तन्वि पूर्वमहश्यत । अधुना हृदयेऽप्येष मृगशावाक्षि लच्यते ॥" अर्थात् हे कृशांगि, राग प्रथम तो कुदरू के फल समान तेरे श्रोष्ठों में हो दीखता था, पर अब तो वह हे मृगशावाक्षि तेरे हृदय में भी दिखलाई पड़ता है। __ यहाँ राग ( लाल रंग और प्रेम ) वास्तव में भिन्न-भिन्न है, फिर भी उसका एक ही प्रकार से एक ही काल में स्थिति रूप कहे जाने के कारण अभिन्नवत् प्रतीत होता है-दोनों का एकत्व प्रकट करता है, भिन्नवत् प्रतीत नहीं होता, इसलिये यह पर्याय का शुद्ध उदाहरण भी नहीं कहा जा सकता। यद्यपि काव्य-प्रकाश के टीका-कर्त्तात्रों ने इसमें क्रम-"प्रथम एक आधार अधर में ही राग था, अब द्वितीय श्राधार हृदय में भी वह है" बतलाया है, किंतु प्राचार्यजी ने इस उदा- हरण को संतोषप्रद न मान दूसरा उदाहरण भी दिया है। द्वितीय पर्याय-लक्षण में भो 'क्रमशः' शब्द समुच्चयालंकार के पृथक्त्व का द्योतक है, क्योंकि द्वितीय समुच्चय में भी अनेक वस्तुओं की एक-ही अाधार में स्थिति एक काल में ही कही जाती है, पर वह क्रमशः नहीं होती, जैसी कि इस अलंकार में । इसी प्रकार "परिवृत्ति अलंकार से इसकी पृथक्ता-वर्णन में अलं- काराचार्यों का कहना है कि "परिवृत्ति में एक वस्तु दूसरे को देकर बदले में दूसरी वस्तु उससे ली जाती है, जो यहां नहीं है। ____श्रीमम्मट ने पर्याय का लक्षण-"एक क्रमेणानेकस्मिन्पर्यायः" ( एक ही वस्तु यदि क्रम से अनेक में पायी जाय ) मानते हुए कहा है कि "यदि एक वस्त