पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५५६

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काव्य-निर्णय ५२१ हाँ' दिख-साध निबार रहों, तब-ही लों भटू सब भाँति मलाई । देखत कॉन्द' न चेत रहै, नहिं चित्त रहे, न रहे चतुराई ।।. अरथावृत्ति-दीपक उदाहरन जथा- रहे थकित से चकित है, सँमर - सुंदरी बोंनि । तो चितोंनि लखि, ठोनि तकि, निरखि तनोंनि सु भोंनि ।। छिन होति हरो-री मही को लखें, निरख छिन छिन जो जोवि-छटा। अबलोकति इंद्र-बधन की पाँति, बिलोकति है छिन' कारी-घटा । तकि डार-कदंबन की तर, दरसै. उत" नाँचत मोर-अटा। अध-ऊरध भाबत-जात भयौ, चित नागरि को नट-कैसौ बटा॥ वि०-"दासजी ने इन सभी उदाहरणों में प्रथम दीपक उसके बाद पदा- वृत्ति दीपक और उसके बाद अर्थावृत्ति दीपक के उदाहरण दिये हैं । प्रथम दो दीपक और श्रावृत्ति वा पदावृत्ति दीपक के उदाहरण काफी स्फुट हैं। अर्था- वृत्ति दीपक के दोनों उदाहरणों में अर्थ की श्रावृत्ति -"लखि, तकि और निरखि' एवं “लखें, निरखें, अवलोकति, बिलोकति, तकि-श्रादि से स्पष्ट है । ये सभी क्रियाएँ एक-ही अर्थ की द्योतक है। अतएव अर्थावृत्ति दीपक है। ___ "अध-उरध श्रावत-जात भयौ, चित नागरि को नट कौ-सौ" अधावा "नट कैसौ बटा" रूप इस भावाव्यक्ति पर दासजी से पूर्व 'शीतल' बी ने अपूर्व उक्ति कही है, जैसे- "थी सरद-चंद की जौन्ह खिली, सोवै था सब गुन-जटा हुआ। चोवा की चमक, अधर बिहँसन, रस-भींगा दादिम फटा हुमा ॥ ___पा०-१. (का०) (३०) आ...। (प्र०) हार्दिक-साधन वारे रहै, ता...( नि०) यो सिख-साथ निबारें रहो...। २. (का०) (३०) (प्र०) (नि०) कान्हें । ३. (०नि०) ...चेत रहै रो, न चित रहै...। (प्र.)...चेत रहै थिर, चित्त रहै...। ४.( का०) (३०)(प्र.) रहै... (सं० पु० प्र०) रहै चकित थकित है, सुदरि रति है भोंनि । ५. (का०)(३०) तुव चितवनि लखि स्वनि तकि...(प्र.) (स० पु० प्र०) तुब चितबनि लखि ठोनि तकि...। ६. ( का०) (सं० पु० प्र०) भृकुटि नोंनि लरिन रोंनि । (३०) निरखि रोंनि भ्र वनोंनि । (प्र.) निरखि तनोंनि भ्ररोंनि । ७.(का) (0)(प्र.)(सं.. पु० प्र०), निरखे छैन-जो छैन-जोति... क. (का.) (३०) (सं० पु० प्र०)-भू की पत्यारी.... ६.(का०)( )(प्र०) खिन...। १०.(प्र०), लखि 'बोस नाचत...। ११. (सं० पु० प्र०) जो...।

  • नि० (दास)५०७७, २२७ (सखि-कर्म 'शिक्षा')।