५५० काव्य-निर्णय ध्यान-ही में भाँनि-आँनि, पो को गहि.पॉनि-पाँनि, ऐचि' पट तोनि-ताँनि मेंन - मद गारवी'। प्रेम-गुन गाँनि-गाँनि, अमृतन -साँनि-साँनि, बाँनि-बाँनि, खां नि-खाँ नि बेंनन-विचारती ॥* वि०-"दासजी ने अपने इस कवित्त को स्व-निर्मित 'शृंगार-निर्णय' में 'स्वकीया वासकसज्जा के उदाहरण में भी कुछ पाठ-भेद के साथ दिया है, जैसे- जाँनि-जॉनि आबै प्यारौ पीतम बिहार भूमि, मॉनि - माँनि मंगल सिँगान सिँगारती। 'दास' हग - कंजन के बदनबार ताँनि-तानि छोनि - छाँनि फूले - फूल सेजै संवारती ॥ भाँनि-माँनिपी को गहि पॉनि-पानिध्याँन-ही में, ऐचि पट तौनि-ताँनि मन-मद - मारती । प्रेम गुन गाँनि-गाँनि, पीउ बनि साँनि-साँनि, ___ बाँनि-बौनि खाँनि-खाँनि बेंनन - बिचारती ॥* और भी पाठांतर मिलते हैं, जो पाठांतर में नीचे दिये हैं । दामोदर कवि ने भी "वासकसज्जा" नायिका ( नायक का निश्चय रूप से आना जान कर मुंगारादि से विभूपित होने वाली) का सुदर वर्णन किया है, यथा- "धारें लाल सारी प्यारी हीरन-किनार वारी, अंगन अनंग - दुति रंग चढ़ि पायौ है। 'दामोदर' कहै बाल बैगे जो बिनोद - भरी, लाल के बिलोकिबे कों मोद मढ़ि मायौ है ॥ झाँकी, झुकि, झाकि झरोखा खोलि घूघट कों, बदन - बिकास को प्रकास बदि भायौ है। जोरि के नछन, बिथोरि घन - घोर मौनों, फोर रबि - मंडल को चंद - कदि भायौ है । और इस शब्दालंकार 'वीप्सा' का-उसकी माला का, उदाहरण प्रसिद्ध कवि 'देव'-रचित भी सुंदर है, जैसे- "रीमि-रीमि, रहसि - रहसि, हँसि-हँसि उठे, ___ साँसें भरि, भासू - भरि, कहति दई-दई । पा०-१. (३०) (सं० पु० प्र०) लेटी.... २. (३०) मारती । (सं० पु० प्र०), भारती । ३.(का०) (३०) (सं० पु० प्र०) पिऊन । ( नि०)पीउ पनि...।
- भृ नि० (मि० दा०) पृ० ५४, १६० !