पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६५३

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६१८ काव्य-निर्णय सभी ने अपनी-अपनी प्रतिभा के कारण इस क्षेत्र में जोर-अजमाई की है। अस्तु, ब्रजभाषा में कुछ विशिष्ट विद्वानों-प्राचार्यों द्वारा मान्य संख्या इस प्रकार है, जैसे-प्राचार्य केशवदास ३७, भाषाभूषण-रचयिता महाराज जस- वंतसिंह (जोधपुर ) १०४, मतिराम त्रिपाठी ६७, आपके भाई कविवर भूषण ६५, देव ३६....."इत्यादि । अन्य प्राचार्य जैसे-पद्माकर, ग्वाल, नवनीत- आदि के भी नाम लिये जा सकते हैं। इन महानुभावों ने भी अलंकार-संख्या में पार्थक्य का पल्ला नहीं पकड़ा है, सबने अपनी-अपनी राह अलग-अलग बनायी है । फिर भो दासजी मान्य संख्या सबसे अधिक है, यह निर्विवाद सिद्ध है। ज्ञात होता है श्राचार्य भिखारी दासजी ने अलंकार निदेर्शन में उसके शास्त्र के अध्ययन में गहरी दृष्टि से काम लिया है । आप अपने से पूर्व और पर सभी ब्रजभाषा-रीति आचार्यों से आगे बढ़ गये हैं। अलंकारों का श्रापने सुंदर विकास किया है उन्हें संस्कृत के अलंकार शास्त्र-निष्णात श्राचार्य उद्भट के समान अपनी पैनी दृष्टि से निरख-परखकर एक निराली वेष-भूषा में प्रस्तुत किया है।" "इति श्रीसकलकलाधरकलाधरबंसावतंस श्रीमन्महाराज कुमार श्रीबाहिदूपति बिरचिते 'काव्य-निरनए' चित्र-काम्य- बरनोननाम इकविसतिमोग्लासः ॥"