पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६५७

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andinand ६२२ काव्य-निर्णय तीसरौ "कष्टसरिं" तुक उदाहरन जथा- सात धरीहूँ नहीं बिलगात, लजात औ' बात-गुने मुसकात तेरी-सों खात-हों लोचँन रात है, सारस-पात ते सरसात है। राधिका माधौ उठे परभात हैं, नेन अघात हैं, पेखि प्रभात हैं। पारस गात-भरे अरसात' हैं, लागि'-सों-लागि गरें गिरि जात हैं। अस्य तिलक इहाँ-"मुसकात, सरसात, प्रभात, जात" इन चारों तुर्कंग में "प्रभात" तुक “कष्टसरि" है, कारन मै हूँ पदते पायौ ताते "कष्टसरि"। अथ मध्यम-तुक बरनन जथा- पसजोग-मिलि, सुर-मिलित, दुरमिल तीन प्रकार । मध्यम-तुक ठहराब ते, जिनकी बुद्धि अपार ।। वि:-"दासजी ने इस लक्षण-द्वारा 'मध्यम तुक" के-"असंजोग-मिलित, स्वर-मिलित और दुर्मिल तीन भेदों का कथन किया है तथा इनके उदाहरण- ही नहीं, तिलक-द्वारा' व्याख्या भी को है।" प्रथम असंजोग मिलित तुक को उदाहरन मोहिं भरोसौ जाँउगी, स्याँम-किसोर ब्याहि । पाली मो अखियाँ न-तरु* इती न रहिती चाहि ।।. अस्य तिलक इहाँ-ज्याहि को समान बरनी तुक "च्याहि" चहिऐ, पै वैसौ नाही, अर्थात् ब्याहि-समान 'चाहि' नाहीं, ताते असंयोग मिलित तुक मध्यम है। पुर-मिलित तुक को उदाहरन जथा- कछु हेरेंन के मिस हेरि उतै, बलि पाए कहा हो महा बिष-बै । हग वाके झरोखन लागि रहे, सब देह-वहीं बिरहागन' ते॥ पा०-१. (प्र०)(३०) (प्र०) सों ..। २. (सं० पु० प्र०) ही में"। ३. ( स० पु०- प्र०) सों "। ४. ( स० पु० प्र०) भंगरात...| ५.(रा० पु. नी० सी०) लाजि"। ६. (३०) (सं० पु० प्र०) जिनके"। ६.(रा. पु० नी० सी०) भावियाँ न-तर"।७. (स० पु० प्र०) चलि"। २. (का०) (प्र०) विरहागिनि में तै । (स०प०प्र०) विरहागि में है।

  • भारती-भूषण (के०) पृ०-३७०।