६२४ काव्य-निर्णय अस्य तिलक इहाँ तीन चरन में तुक सुमिन भौ चौथी में अमिन है। पलकें, पलकें, झलकें इन तीन तुकँन में बरन तीन-तीन हैं, पर चौथी तुक "छकें' में ही बरन हैं, ताते यै अमिल-सुमिल अधूम तुक है। दुतिय श्रादि-मत्ता अमिल तुक कौ उदाहरन- मृदु-बोलँन-बीच सुधा स्रबती, तुलसी-बँन बेलिँन में भैबती। नहि जाँनिय कोंन की है जुबती, वहि ते अय औधि है रूपबती॥ अस्य तिलक इहाँ सबती, भँवती, जुबती और रूपवती में भादिमत्ता ( आदि मात्रा- मादि वर्ण की मात्राएँ, जैसे-'स' में प्रकार की मात्रा, 'मैं' में सानुस्वार भकार, 'जुब' के जु में उकार की मात्र 'रूप'.. के 'रू' में ऊ की मात्राएँ) भमिल हैं, वे मापुस में मिलत नाहीं, ताते भादि-मत्ता प्रमिल अधुम तुक है। तृतीय अंत-मत्ता अमिल अर्धेम तुक को उदाहरन- कंज-नेंनि, निज कंज कर, ने नन अंजन देति । विष मानों बाँनन भरति, मोहि मारिबे हेतु'। अस्य तिलक इहाँ--'देति' में 'इ' की मात्रा औ 'हेतु' में 'उ' की मात्रा अमिल है, ताठे 'अंत-मत्ता अमिल' रूप अधुम तुक है। अथ बीपसा और लाटिया तुक लच्छन बरनन- होत 'बोप्सा' जॉम की, तुक अपने-ही भाव । उत्तमादि तुक आइ'-ही, है 'लटिया' बनाव। वि०-"दासजी ने इस दोहे के द्वारा तीन प्रकार की तुकें, जैसे--वीप्सा रूप, यमक रूप और लाटानुरूप और मानी हैं। इनके भी उदाहरण और परिभाषा यथा-स्थान दी है, अस्तु पुनरुक्ति निरर्थक है।" प्रथम 'बीपसा' तुक को उदाहरन जथा- भाज सुरराइ पर कोप्यौ तँमराइ ककू, भेदन-बदाइ अपनाइ लैलै धेनु-धनु । पा०-१ (का०) (२०) देतु। (प्र०) देत । २. (का०) (३०) हेतु । (प्र०) हेत। ३. (का०) (प्र०) (३०) आगे-ही...1४. (का०) धनु-धनु । (३०) धनु-धनु । (सं०पु०प्र०) ले सधनु-धनु ।
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