पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्य निर्णय ४७ अस्य तिलक इहाँ चेष्टा सों नायिका (द्वारा) नायक कों बिहार के लिऐं बुलाइवौ ब्यंजित होत है. अर्थात् बुलाइवौ चाँहति है, ये ब्यंजित होत है। वि०-"चेष्टा-द्वारा व्यंग्यार्थ सूचित होना--"चेष्टा वैशिष्ट्य व्यंग्य कहलाता है, जैसा इस उदाहरण में। ____ काव्य-प्रभाकर के रचयिता जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' ने इस चेष्टा से व्यंग्य वर्णन के उदाहरण में दासजी के उक्त भाव-स्वरूप दोहा दिया है- "श्रृंग-भंगराइ, जॅमाइ तिय, निरखि साँमुहें रोंन । मुरि मुसिकाइ, नचाइ ग, गमनी सूं ने भोंन ॥" पर इस लक्षण के अनुसार चेष्टा से व्यंग्य का उदाहरण 'विहारीलाल' की यह सूक्ति बड़ी सुंदर है, यथा- "न्हाइ, पैहैरि पट उठि कियौ-बेदी-मिस परनाम । ग-चलाइ घर कों चली, बिदा किए घनस्याँम ॥" दासजी ने अपने 'शृगार-निर्णय में तथा पं० मन्नालाल ने अपने 'सुदरो- सर्वस्व' में इस सवैया को परकीयांतर्गत-'क्रिया-विदग्धा नायिका के वर्णन में दिया है। क्रिया-विदग्धा - "जो तिय साधै काज निज, करि कछु क्रिया सुजाँन । 'क्रिया-विदग्धा नायिका,' ताहि लीजिऐ जान ॥" -म० मंः (अजान ) पृ०३६, रसलीनजी ने अपने 'रस-प्रबोध' में क्रिया-विदग्धा' के-'पति' और 'दूती' वंचता नाम से दो भेद और माने हैं, यथा- "पति-देखति हूँ होइ जो, उपपति के रस-लींन । ताहि कहत 'पति-बंचिता', जे पंडित परबीन ॥" "दती सों सब तूति करि, मिले न ताहि जताइ । 'दूति-बंचिता' ताहि कों, कहत सबै कबिराइ ॥" -२० प्र० (रसलीन ) पृ० ३२ "मुख-मोरत नेन की सेन्हन दे, अंग-अंगन 'दास' दिखाइ रही । ललचोंए, लजोंए, हॅसोंए चितै, हित से चित चाब बढ़ाइ रही। मुरिके, अरिके, दृग सों भरिके, जुग भोहन भाव बताइ रही । कॅनखा करिके, पग सों परिकें, पुनि सने निकेत में जाइ रही ॥" महावीर प्रसाद मालवीय ने स्वसंपादित काव्य-निर्णय में अंतिम पंक्ति के स्थान पर निकेत के संकेत पाठ माना है।