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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/८३

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काव्य-निर्णय और उदाहरण यथा-क्रम, जैसे- "रोग-ठान के टोट तिय, निपुन बैद करि ईठ । बैठी पति सों पीठ दै, जोरि पीठ सों पीठ ।। दूती, कलि जो आइतु, मो सँग लायौ नेह । तुब भलेपन मान के, कियो हिए में गेह ॥" (११) मिस्रित बिसेख बरनन 'दोहा' जथा- बकता अरु बोधव्य ते,' बरन्यों 'मिलित' बिसेस । योंहीं औरों जानिएं, जिन को सुमति असेस ॥ वि०--"जब कहीं एक, दो वा अनेक वैशिष्ट यों के संयोग से एक ही व्यंग्यार्थ सूचित हो, वहाँ “मिश्रितवैशिष्ट य” अथवा 'मिश्रित विशेष-व्यंग्य कहा जाता है।" उदाहरन 'दोहा' जथा-- इहि सज्जा अज्जा रहै, इहिं हो चाँहत सेन । अहो राँतोंधिया, बात यै, सेन-सँमें भूलें न• ॥ अस्य तिलक इहाँ बक्ता (कहनेवाले ) की चातुरी है भौ रतोंधी के वहाँने ते बोषम्य हू की चातुरी है। वि०-"दासजी ने अपने इस दोहा में--'वक्ता (नायिका) और बोधक (श्रोता पथिक ) दोनों के कहने और सुनने व समझने के वैशिष्ट य से नायिका के शयन-स्थल-सूचन के साथ रति-व्यंग्यार्थ प्रकट किया है, जो स्वयंतिका' नायिका की सुंदर उक्ति है। स्वयंतिका- "स्वयं दूतिका, दूत-न करै जु भरने काज ।" इत्यलं, क्योंकि इस संबंध में 'विशेष' आगे लिखा जा चुका है, (दे०- 'इहि निस धाइ.' का विशेष ) दासजी का यह उदाहरण 'गाथासप्तशती' की इस गाथा का अनुपम अनुवाद है, यथा- पा०-१. (प्र. ) (३० ) सों...। २. (प्र. ) (३०) जानि हैं। ३. (३०) (भा० जी०) के...। ४. (३०) इहि सैया अता "| ५. (प्र०-२) इहाँ करति हों सेंन । ६. (प्र.) (३०) हे रतीधिए... । (भा० जी०) है रॅतौथी है बात.."। (प्र०-२) अरे रैतोंधिया बात यै। ७.(सं० प्र०) इहि हों, वह तुब सेन ।