पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/९३

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काव्य-निर्णय रूपक अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- पारोपन उपमान को, ताको 'रूपक' नाम। काँन्ह कुमर कारी घटा, बिज्जु-छटा तू बाँम ॥ अतिसयोक्ति अलंकार बरनन 'दोहा' जथा-- 'अतिसयोक्ति' अति बरनिऐं, औरें [न-बल-भार । दाबि सैल-महि निमिख में, कपि गौ सायर-पार ॥ वि०-“यहाँ दासजी का कथन है कि जिस पर्वत-शृंग से श्री हनुमान समुद्र उलाघने को उछले, वह धरणी ( पृथ्वी ) में धस गया, अतएव उनके बल-भार के वर्णन में यह अतिशयोक्ति रूप अलंकार है। 'दासजी ने यहां 'उल्लेषालंकार' का वर्णन नहीं किया, अागे 'उदात्त' का वर्णन किया है, क्यों...", इसका यहाँ कोई उल्लेख नहीं है, पर आगे के उल्लास में जहाँ यह अलंकार पाया है, वहाँ अवश्य किया है।" उदात्त अलंकार परनन 'दोहा' जथा- है 'उदात्त' हू' महत अति, संपत को अधिकार । सुरपति-छरियादार और नगन-जटित मग-द्वार ।। अधिक अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- 'अधिक' जॉन घट-बढ़ जहाँ, है अधार-आधेह । जग जाके उदर-हिं बसै, तिहिं तू ऊपर लेह ॥ वि०-"इससे आगे दासजी ने 'अल्प' और 'विशेषालंकारों' का वर्णन नहीं किया है, आगे के उल्लासों में किया है।" अन्योक्त्यादि अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- 'अन्योक्ती' और-हिं कहें, और-हिं के सिर-डार । सुक, सेंमर को सेइबो, अजहूँ तजै बिचार ।। ब्याज स्तुति बरनन 'दोहा' जथा- 'ब्याज स्तुति पहचानिऐं, स्तुति-निंदा के ब्याज । बिरह-वाप वाकों दियौ, भल्यौ कियौ ब्रजराज ॥ पा०-१. (प्र०) है उदात्त मह व भरु।२ (प्र.) छरीदार जहँ द्र है,...। ३. (प्र. . नाके बोदर बसै, (३०) अोदर बसे । ४ (प्र.) सोइयो।