पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/९५

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काव्य-निर्णय मीलित-अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- है, समान 'मीलित" जहाँ मिलत दुहूँ विध' 'दास' । मिल्यो' कमल में फैमल-मुख, मिली सुबास सुवास ॥ उनमीलित अलंकार बरनन 'दोहा' जथा-- है, बिसेस 'सनमिलित' मिल, क्योंहूँ जॉन्यों जाइ । मिल्यौ कमल-मुख कमल-बैन, बोलति ही बिलगाइ॥ सँम-अलंकार बरनन 'दोहा' जथा-- उचित बात छैहराईए, 'सम' भन तिहिं नौम। इन कजरारे डगँन-बसि, क्यों न होइ हरि स्याम ॥ वि०-"प्रतापगढ़ 'सरस्वती-भवन वाली प्रति में 'सम'-अलंकार के अंतर्गत - "भाविक, समाधि, सहोक्ति, विनोक्ति और परिवृत्त"- अलंकार एक ही शीर्षक के साथ लिखे हैं।" भाविक-अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- 'भाबी' -भूत प्रतच्छ ही, है 'भाबिक' को साज । हमें भयौ सुर-लोक-सुख, प्रभु-दरसँन ते आज ॥ समाधि-अलकार बरनन 'दोहा' जथा- सो 'समाधि' कारज सुग़म, और हेत मिल होत । मिलवे की इच्छा भई, नास्यो दिन उद्दोत ॥ सहोक्ति अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- कछु है होई 'सहोक्ति' में, साथै परे प्रसंग । बदन लगी नब बाल-उर, सकुच कुचॅन के संग ।। विनोक्ति अलंकार बरनन 'दोहा' जथा-- है 'बिनोक्ति' कछु बिन ककू, सुभ के असुभ चरित्र । माया-बिन सुभ जोग-जप, असुभ सुहृद बिन मित्र । पा०-१. (भा० जी०) (प्र०) (३०) मीलितो। २. (भा० जी०) (प्र०) (३०) गॅनों। (प्र०-२) वहाँ । ३. (मा० जी०) दिसि । ४. (भा० जी०) मिली मल में कमल-पुखिक (प्र०) मिल्मी कमल-मुख कमल-वन । ५. (प्र०) (०) या. कजरारे ....(मा० बी०) तो कमरे । ६. (स० प्र०) मित्र-मिलन इच्छा.... ७. (मा० जी०) बर्दैन...।