पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१००

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काव्यदर्पण (३) मन स्वभावतः कोमलता, मधुरता तथा सरलता को चाहता है ; क्योंकि यह उसके अनुकूल है। ये बातें काव्य से ही संभव हैं। यह अनुकूलता भी काव्य की एक प्रेरक शक्ति है। (४) कौतुकप्रियता भी काव्य-रचना में अपना प्रभाव दिखाती है। इससे कौतूहलपूर्ण आनन्द होता है। काव्य में वैचित्र्य और चमत्कार लाने की जो चेष्टा है वही इसके मूल में है। ___इस प्रकार नवीनों ने नये-नये काव्य-कारण के उद्भावन किये है, जो अाधुनिक विचारों के पोषक हैं। पाँचवीं छाया काव्य क्या है ? काव्य के लक्षण अनेक हैं; पर प्राचार्यों के मतभेदों से खाली नहीं । निर्विवाद कोई लक्षण हो ही कैसे सकता है जब कि विचारों और तर्क-वितकों का अन्त नहीं है और जब कि काव्य का स्वरूप ही ऐसा व्यापक और सवग्राही है ! ____साहित्यदर्पण का लक्षण है- 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' अर्थात् सर्वप्रधान होने के कारण रस ही जिसका जीवनभूत श्रात्मा है ऐसा वाक्य काव्य कहलाता है। इसी से कहा है कि काव्य में वाणी की विदग्धता-विलक्षणता-विमिश्रित चातुर्य की प्रधानता होने पर भी उसका जीवन रस ही है। शब्द-सौष्ठव-मात्र उतना मनोरम नहीं हो सकता, वक्तव्य विषय को व्यक्त करने के भिन्न-भिन्न प्रकार उतने मनमोहक नहीं हो सकते, जितना कि मार्मिक और सरस अथ । शब्दों का लालित्य वा उनकी झंकार सुनकर हम भले ही वाह-वाह कह दें पर ये हमारे हृदय का स्पर्श नहीं कर सकते, उसमें गुदगुदी पैदा नहीं कर सकते। पर अर्थ इस अर्थ के लिए सर्वथा समर्थ है। अलौकिक आनन्द का दान हमारे काव्य का ध्येय है। यह आनन्द बाह्याडम्बर से प्राप्त नहीं हो सकता। अलंकार वा विशिष्ट पद-रचना काव्य की श्रात्मा नहीं हो सकती । काव्यात्मा तो बस अर्थ का उत्कर्ष ही है जो रस के समावेश से ही सिद्ध हो सकता है। जब तक किसी बात से हमारा हृदय गद्गद नहीं हो उठता, मुग्ध नहीं हो जाता तब तक हम किसी वर्णन को काव्य कह ही कैसे सकते हैं ! किसी भाव के उद्रेक ही में तो अर्थ को सार्थकता है। यह अर्थ हृदयस्पर्शी तभी हो सकता है जब उसमें हृदय के सुप्त भाव को छेड़कर जागरित करने की शक्ति हो। उसी जाग्रत भाव में हम भूल जायें तो हमें सच्चा आनन्द प्राप्त होगा और वही आनन्द काव्य का रस है।