काब्य के कारण आधुनिक विवेचक विद्वानों का विचार है कि कुछ ऐसी मानसिक वृत्तियां है, जो काव्य-रचना की प्रेरणा करती हैं। वे हैं-(१) आत्माभिव्यक्ति, (२) सौन्दर्य- प्रियता, (३) स्वाभाविक आवर्षण और (४) कौतुत-प्रियता। इनमें मुख्यता श्रात्माभिव्यक्ति वा श्रात्माभिव्यञ्जन की है। (१) कुछ प्रतिभाशाली मनुष्य अपनी मानसिक भूख मिटाने के लिए वास्तव जगत् की वस्तुओ से काल्पनिक सम्बन्ध जोड़ते है और जीवन को पूर्ण करने की चेष्टा करते है। इस चेष्टा में वे अपने हृदय के उमड़ते हुए भावों को साज-सँवार कर व्यक्त करते हैं और उनके माधुर्य का उपभोग करते है। वे केवल श्राप हो उनका आनन्द उटाना नहीं चाहते, बल्क वे यह भी चाहते है कि उनके समान दूसरे भी वैसे ही श्रानन्द का उपभोग करें। इस काव्य-कारण को कवीन्द्र रवीन्द्र अनेक भावभंगियों से यो व्यक्त करते हैं- (क) "हमारे मन के भाव को यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अनेक हृदयो में अपने को अनुभूत करना चाहता है ।" (ख) "हृदय का जगत् अपने को व्यक्त करने के लिए श्राकुल रहता है। इसीलिए चिरकाल से मनुष्य के भीतर साहित्य का वेग है।" (ग) “बाहरी सृष्टि जैसे अपनी भलाई-बुराई, अपनी असंपूर्णता को व्यक्त करने की निरंतर चेष्टा करती है वैसे ही यह वाणी भी देश-देश में भाषा-भाषा में हमलोगों के भीतर से बाहर होने को बराबर चेष्टा करती है। यही कविता का प्रधान कारण है।" इसी भाव को भिन्न रूप से पाश्चात्य विद्वान भी प्रगट करते है । वसवर्थ का कहना है कि "समय-समय पर मन में जो भाव संगृहीत होता है, वही किसी विशेष अवसर पर जब प्रकाश में आता है तब कविता का जन्म होता है। ___ यही लार्ड बायरन का भी कहना है-"जब मनुष्य की वासनाएँ या भावनाएँ अन्तिम सीमा पर पहुँच जाती हैं तब वे कविता का रूप धारण कर लेती है ।"२ (२) मनुष्य स्वभावतः सौन्दर्यप्रिय होता है और सर्वत्र ही सौन्दर्य का अनुसन्धान करता है, क्योंकि सौन्दर्य से एक विशेष प्रकार का श्रानन्द होता है। काव्य में सौन्दर्य की प्रधानता रहती है। इसलिए उसकी ओर प्रवृत्ति स्वाभाविक हो जाती है । यही कारण है कि काव्य रमणीयार्थप्रतिपादक और रसात्मक होता है । १. Poetry takes its origin from emotion recollected in tranqulity. २. Thus their extreme verge the passions brought, Dash in poetry, which is but passions.
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