पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पण उसके कारण आनन्द का जो उद्रेक होता है, उसकी सामग्री विशेष रूप से वर्तमान' हो।" व्याख्याकार का आशय अर्थ की रमणीयता से ही है। रस्किन ने तो स्पष्ट कहा है- "कविता कल्पना के द्वारा रुचिर मनोवेगों के लिए रमणीय क्षेत्र प्रस्तुत करती है।" मानव-जीवन और प्रकृति से काव्य का गहरा सम्बन्ध है । अतः काव्य मानव- जीवन और सृष्टि-सौन्दर्य की विशद व्याख्या है। यही कारण है कि काव्य के अध्ययन से आंतरिक भावनायें जाग उठती हैं और मानव-जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर लेती है। छठी छाया काव्य-लक्षण-परीक्षण कविता का कोई सर्वमान्य लक्षण होना कठिन है। इसके कारण अनेक हैं । कविता के सम्बन्ध में कलाकारों के दो प्रकार के मनोभाव है। कोई-कोई कविता को केवल मनोरंजन का साधन समझते है और उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं । इसके विपरीत कुछ कलाकार ऐसे हैं, जो कविता के प्रशसक ही नहीं, उसके पुजारी है। वे उसे देवी वस्तु समझते है। लक्षण-भिन्नता के मुख्य कारण ऐसे हो मनोभाव हैं। विचेस्टर के मत से काव्य के मूल तत्त्व चार है-पहला है, भावात्मक तत्त्व ( Emotional element)। इसमें रस ही मुख्य है। दूसरा है, बुद्धितत्त्व ( Intellectual element )। इसमें विचार की प्रधानता है; क्योकि जीवन के महान् तत्त्वों पर इसकी भित्ति स्थापित की जाती है। तीसरा तत्व है कल्पना ( Imogination )। रसव्यक्ति में इसकी मुख्यता मानी जाती है। चौथा तत्व, है काव्यांग ( Formal elements)। इसमें भाषा, शैलो, गुण, अलंकार आदि आते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि काव्य-साहित्य वह वस्तु है, जिसमें मनो- भावात्मक, कलात्मक, बुद्ध्यात्मक और रचनात्मक तत्वों का समावेश हो। पर, लक्षणकार एक-एक तत्व को ले उड़े है और अपने-अपने मनोनुकूल लक्षण लिख डाले हैं। किसी-किसी के लक्षण में एक से अधिक भी तत्व पाये जाते है। कविता के मुख्यतः दो ही पक्ष सामने आते हैं। एक भावपक्ष और दूसरा कलापक्ष।