सातवीं छाया सारोपा और साध्यवसाना सारोपा लक्षणा जिस लक्षणा में आरोप हो अर्थात् आरोग्यमाण (विपयी) और आरोप का विषय इन दोनों की शब्द द्वारा उक्ति हो, उसे सारोपा कहते हैं। एक वस्तु का दूसरी वस्तु मे अभेद-ज्ञापन को आरोप कहते हैं। इसमें विषयो और विषय को एकरूपता प्रतीत होती है। जिस वस्तु का आरोप किया जाता है वह अारोपमाण वा विषयी और जिस वस्तु पर आरोप होता है उसे आरोप का विषय वा केवल विषय कहते हैं। जैसे-मुख चन्द्र है। यहाँ मुख पर चन्द्रत्व का आरोप है। सारोपा गौणी लक्षणा स्वर्ण-किरण-कल्लोलो पर बहता रे यह बालक मन ।-निराला यहाँ किरणो पर कल्लोलों का श्रारोप है । किरणें लहर बन गयी हैं। उनपर बालक बना मन बह रहा है। दोनों में रूप गुण-साम्य है । अतः गौणी है । इसमें लक्षण-लक्षणा से 'बालक मन का अर्थ 'भोला मन' और 'मन बहने' का अर्थ "मन का रम जाना-मुग्ध हो जाना होता है। यहाँ दोनों ही उक्त हैं। सारोपा शुद्धा उपादानलक्षणा स्वर्गलोक की तुम अप्सरि थीं, तुम वैभव में पली हुई थीं।-हरिकृष्णप्रेमी यहां 'तुम' पर अप्सरा का आरोप होने से सारोपा है। अपनरा अपना अर्थ रखते हुए अप्सरा-सी सर्वांगसुन्दरी, मनमोहिनी नारी का आक्षेप करती है। इससे उपादानमूला है। मनमोहन रूप कर्म के कारण वा स्त्रीजाति के होने के कारण तात्कम्यं वा साजात्य सम्बन्ध से शुद्धा है। सारोपा शुद्धा लक्षण-लक्षणा आज भुजगों से बैठे हैं वे कचन घड़े दबाये ।-प्रेमी यहाँ 'वे' के वाच्यार्थ (पूंजीपति ) विषधर का आरोप है। विषधर अपना अर्थ छोड़कर कर (पूंजीपतियों) का अर्थ देता है। इससे लक्षणलक्षण है। काटना दोनों का कम है, इस तात्कम्य सम्बन्ध से शुद्धा है। साध्यवसाना लक्षणा जहाँ आरोप का विषय लुप्त रहे-शब्दतः प्रकट नहीं किया गया हो और विषयी (आरोप्यमाण) द्वारा ही उसका कथन हो वहाँ साध्यवसाना
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