पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१२३

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'सारोपा लक्षणा “३१ लक्षणा होती है। आरोप के विषय का निर्देश न कर केवल आरोग्य- मान के कथन को अध्यवसान कहते हैं। जैसे- देखो, चाँव, का टुकड़ा। यहाँ आरोप के विषय मुख का निर्देश नहीं है। केवल आरोष्यमाण चाँद का टुकड़ा' ही कहा गया है। साध्यवसाना गौणी लक्षणा हाय मेरे सामने ही प्रमय का ग्रन्थिबन्धन हो गया, वह नव कमल- मधुप सा मेरा हृदय लेकर किसी अन्य मानस का विभूषण हो गया ।-पंत अपनी प्रणयिनी का दूसरे से परिणय हो जाने पर कवि को उक्ति है । इसमें “नव कमल' 'प्रणयिनी' के लिए आया है, जो अारोप्यमाण है। आरोप के विषय का कथन नहीं है । विषयी में विषय का अध्यवसान हो जाने से साधवसाना है। गुणधर्म से सादृश्य होने के कारण गौणी है। ऐसे हो 'प्रणय' में 'प्रेमी-युगल' का अध्यवसान है। साध्यवसाना शुद्धा उपादानलक्षणा विद्युत् की इस चकाचौंध में देख दीप को लौ रोती है । अरी हृदय को थाम महल के लिए झोपड़ी बलि होती है ।-दिनकर यहाँ महल में रहनेवाले धनियों और झोपड़ी में रहनेवाले गरीबों के लिए महल और झोपड़ी के प्रयोग हुए हैं। ये स्वार्थ को न छोड़ते हुए अन्यार्थों का उपादान करते है। अतः यह लक्षणा उपादानमूला है। श्रारोप्यमाण के ही उक्त होने से साध्यवसाना है । श्राधाराधेयभाव सम्बन्ध होने से शुद्धा है। साध्यवसाना शुद्धा लक्षणलक्षणा सहता गया जिगर के टुकड़ों का बल पाया हाँ षाया। भारतीय आत्मा यहाँ 'जिगर के टुकड़ों में आत्मीयों का अध्यवसान है, क्योंकि अारोप्यमाण 'जिगर के टुकड़ों हो उक्त है। प्रात्मात्मेय सम्बन्ध होने के कारण शुद्धा है । 'जिगर के टुकड़ों अपना अर्थ छोड़कर अत्यन्त निकट सम्बन्धी प्रियजनों का अर्थ देता है। इससे लक्षणलक्षणा है ।