पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१२९

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श्राब्दी व्यंजनों हाथी और सिह का स्वाभाविक विरोध है। इससे हरि के अनेकार्थ होते हुए भी यहाँ पर हरि का सिह हो अर्थ होगा। ऐसे ही- लुकी नाग लखि मोरहिं आवत में नाग का अर्थ सर्प ही समझना चाहिये । ५ अर्थ जहाँ प्रयोजन अनेकार्थ में एकार्थ का निश्चय करता हो वहाँ 'अर्थ' है। जैसे- शिवा स्वास्थ्य रक्षा करे। शिवा हरे सब शूल । यहां स्वास्थ्य-रक्षा करने और शूल हरने का प्रयोजन हरीतकी से ही सिद्ध होता - है । अतः शिवा का अर्थ हरें होगा, भवानी नहीं । ऐसे ही अनेकार्थक शब्द बहुधा अर्थ अर्थात् प्रयोजन के अनुसार तदनुरूप अर्थ में नियत हो जाते हैं। ६ प्रकरण 'जहाँ किसी प्रसंगवश वक्ता और श्रोता को समझदारी से किसी अर्थ का निर्णय हो वहाँ प्रकरण समझा जाता है । जैसे- अब तुम मधु लावो तुरत शब्दों के उच्चारण का अवसर अर्थ-निश्चय का कारण होता है। यहाँ 'मधु' शब्द यदि दवा देने के समय कहा जाय तो इसका अर्थ शहद ही होगा, मदिरा नहीं मद्यशाला में यह कहने पर मधु का अर्थ मदिरा ही होगा। ७ लिंग नानार्थक शब्दों के किसी एक अर्थ में वर्तमान और इसके अर्थ में अवर्तमान किसी विशेष धर्म, चिह्न या लक्षण का नाम लिङ्ग है। - कुशिकनन्दन के तप-सेज से सुमन लज्जित वूमन हो उठे। यहाँ लज्जा और दौमनस्य धर्म फूल में नहीं, देवता में ही संभव है। अत: यहाँ लिङ्ग देवता के अर्थ का निर्णायक हुश्रा । ८ अन्यसंनिधि अनेकार्थ शब्द के किसी एक ही अर्थ के साथ सम्बन्ध रखनेवाले भिन्नार्थक शब्द की समीपता अन्यसंनिधि है । जैसे- परशुराम कर परशु सुधारा। सहसबाहू अर्जुन को मारा।