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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१४१

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विभाव-बालंबन एक नवीन उदाहरण- रूप की तुम एक मोहक खान । देख तुमको प्राण खुलते, फूटते मृदु गान । तुम प्रकृति के नग्न चिर सौन्दर्य को प्रतिबिम्ब । सृष्टि सुषमा की पिकी की एक निरुपम तान । तुम विभा के आदि सर की किरणमाला एक । तुम तरणि की प्रथम उजली उच्छवसित मुसकान। उल्लसित धनसार वन की तुम वसन्ती रैन । मिविह्वल सुधानिझर की प्रणति छविमान । थप दीपक गन्ध का निर्माण तुम साकार। ज्यों कुसम्भी चांदनी पहिने हरित परिधान । पल्ववित होती विरसता भी तुम्हें प्रिय देख । चेतना की तुम चरम परिणति-चरम आदान । तुम लदी कौमार्य कलियों से लता सुकुमार। मुग्ध यौवन और शैशव की नयी पहचान । -अंचल नायिका' स्वकीया, परकीया, सामान्या, मुग्धा, मध्या, प्रगल्भा, ज्ञातयौवना, अज्ञातयौवना आदि अनेक भेदोपभेदों से अनेक प्रकार की होती है। नाम से ही इनके लक्षण प्रकट हैं। एक-दो उदाहरण दिये जाते हैं- मुग्धा नायिका सजनी तेरे ग बाल ! चकित-से विस्मित-से दृगबाल- आज खोये से आते लौट, कहाँ अपनी चंचलता हार? झुकी जाती पलकें सुकुमार, कौन-से नव रहस्य के भार ? सरल तेरा मृदु हास। अकारण वह शैशव का हास- बन गया कैसे चुपचाप, लाज भीनी-सी मृदु मुसकान, तड़ित-सी अधरों की ओट झाँक हो जाती अन्तर्धान !-महादेवी १ रीति-ग्रन्थों में नायिका-भेद आदि का विस्तृत वर्णन है । आधुनिक खड़ी बोली के काव्यों में भी नायिका मेदों के वैसे उदाहरण भरे पड़े हैं, जिनके लिए रीतकाल के कवि बदनाम हैं। यहाँ नाममात्र के कुछ उदाहरण दे दिये गये हैं। .