पू० काव्यदपण अज्ञातयौवना नायिका (मत्स्यगन्धा की सखी के प्रति उक्ति) प्रिय सखि, आज मम सिहर कैसी, प्रकृति-हृदय ही या हुआ मुग्ध ऐसा आज, मानता नहीं है मन, यौवन की क्या लहर कहता जगत जिसे होगी वह कैसी भला ?-उदयशंकर भट्ट नायक रूप-गुणसम्पन्न पुरुष को नायक कहते हैं। जैसे- रुचिर चौतनी सुभग सिर, मेचक कुंचित केस । नखसिख सुन्दर बन्धु दोर, शोभा सकल सुबेस । बय किसोर सुखमा सदन, स्याम गौर सुख धाम । अंग - अंग पर वारिये, कोटि - कोटि शत काम ॥ तुलसी एक नवीन उदाहरण- सत्य कहना हे कन्हैया तुम न साधारण मनुज हो, इन्द्र के अवतार हो या वाम-काम-प्रपंच हो प्रिय ? बृद्ध विधिना की न रचना, तुम्हारे सब कर्म भ्यारे, रूप यह जो वामिनी से भी अधिक उर्जस्व वर्षस, काम से सुन्दर, कला के पूर्ण, अशिथिल, सृजन, चित्रण, चन्द्र से शीतल, मधुर, मोहक हृदय से विशव बल्लभ, सत्य से सुस्पष्ट, मादक सुरा से, पीयूष से मधु, यज्ञ से अतिकर्म, हुत से ज्वलन, दावा से भयावह, प्राण से अति सूक्ष्म संचालन प्रचालन कर्म से गुरु, गहन गाथा के अनिर्वचनीय माधव ब्रह्म जग के। भट्ट अनुकूल नायक (यशोदा को उक्ति नन्द के प्रति ) मेरे पति कितने उदार हैं गद्गद हूँ यह कहते- रानी-सी रखते हैं मुझको स्वयं सचिव से रहते ।-गुप्त स्वभावानुसार नायक के धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीर, ललित और धौरप्रशान्त बामक चार भेद होते हैं। इनमें गाम्भीर्य, धेय, तेज, शोभा आदि पाठ गुण होते है। एक उदाहरण- जैसा तुम्हारा प्रेम मुझमें है मुझे बह ज्ञात है। बल, सेज, विक्रम मी तुम्हारा विश्व में विख्यात है। ,
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