पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नये बालंबन जग में अनुज है धर्म दुर्लभ धर्म ही परमार्थ है । हतधर्म का है व्यर्थ जीवन धर्म सच्चा स्वार्थ है। -रामचरित उपाध्याय राम और लक्ष्मण दोनों धोरादात्त नायक है। पर राम में धैर्य, गाम्भीर्य आदि गुणों को विशेषता है और लक्ष्मण में तेज की । यह लक्ष्मण के प्रति राम की इस उक्ति से ही प्रकट है। चौथी छाया नये आलंबन काव्य के विभावपक्ष में श्रालंबन और उद्दीपन, ये दो विभाव आते हैं। इनमें बालबन विभाव ही मुख्य है। इसके बिना काव्य की सृष्टि संभव नहीं। किसी न किसी रूप में बालंबन का होना आवश्यक है। जगत् के सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल पदार्थ काव्य के प्रालंबन हो सकते हैं । यथोचित वा अनुकूल वालंबन होने से रस का पूर्ण परिपाक होता है और तद्र प ही रसचर्वणा होती है। किन्तु, जहाँ अननुकूल वा अनुचित आलंबन हुआ, वहाँ रस का पूर्ण परिपाक नहीं होता, वहाँ वैसी रसचणा भी नही होती। रसाभास हो जाता है अर्थात् अवास्तव में वास्तव की प्रतीति होती है, आभाविक आनन्द का उदय होता है। जैसे, पशुपक्षियों में मनुष्यवत् वर्पित संभोग- शृङ्गार आदि। पहले के कवियों ने प्राकृतिक बालंबनों को एक प्रकार से उपेक्षा ही की थी। पर अब प्रकृति के नाना रूप पाल वन के रूप में लाये जाने लगे हैं। प्राचीन कवियों ने श्रालंबन के रूप में जिसका वर्णन एक-दो पंक्तियों में किया है, आधुनिक कवियो ने उसे पृष्ठों में चित्रित किया है। यद्यपि छायावादी कवियों ने प्रकृति के प्रकृत रूप में भी चैतन्य ज्योति की ही झलक देखी है तथापि इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि प्रकृति की रमणीयता के प्रति उनका आकर्षण बहुत बढ़ गया है। झरने' के प्रति कवि की उक्ति- किस निर्झरिणी के धन हो, पथ भूले हो किस घर का ? है कौन वेदना बोलो, कारण क्या करुण-स्वर का ?-भा० आत्मा एक रात्रि का वर्णन भी देखिये- किस दिगंत रेखा में इतनी संचित कर किसकी-सी सांस । यों समीर मिस हांफ रही-सी चली जा रही किसके पास ?-प्रसाद छायावादियों ने छायावाद को रहस्यवाद तक पहुँचा दिया। उसो धारा में