पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१४४

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५२ काव्यदर्पण बहनेवाले कवि वर्तमान समय में भी अलौकिक बालंबन की ओर प्रवृत्त देखे जाते हैं। यह यहाँ तक बढ़ गया है कि लौकिक बालंबन को भी अलौकिक रूप दिया जाने लगा है। पर ऐसे अलौकिक और अगोचर आलंबन बुद्धिगम्य हो सकते हैं। आज ऐसी कविताओं में जो कुछ भावप्रवणता है वह मानवीकरण के कारण हो; क्योंकि मानव ही, भावों का जैसा अपरिमित श्राश्रय हो सकता है वैसा ही अपरिमित भावग्राही भी। देश-सेवा तथा राष्ट्र-भावना के जाग्रत होने से भी कविता के विषय बढ़ गये है। जैसे-देश-सेवक, आत्म-बलिदानो राष्ट्रनायक, देश-सुधारक, सत्याग्रही, वीरता के नये आलंबन हुए; वैसे ही देशद्रोही, शत्रु-सहायक भी नये आलंबन बने । ऐसे ही हास के भी विदेशी वेशभूषा, विदेशी आचरण, सार्वजनिक संस्थाओं को सदस्यता के अभिलाषी, पुरानपंथी, ढोंगी आदि भी काव्य के विषय बन गये हैं। नग्न, बुभुक्षित, शोषित-पीड़ित भारत की करुण कथा, कृषकों को कष्ट-कथा, अछूत, पतित, दलित मानव-जगत्, निष्कासित, निपीड़ित अनाथ नारी जाति, यातना कर्मकरों की कहानी अाज के ये सब नये श्रालंबन बन गये हैं। बदली हुई देश-काल की परिस्थिति में ऊँच-नीच का भेद-भाव प्रायः नहीं रहा । इससे आधुनिक कवि विशेषतः प्रगतिवादी या समाजवादी अपने काव्य में किसान और कारीगर तथा उनके रहन-सहन को साधारण बातों को भी बालंबन बनाने लगे हैं। प्रसिद्ध कवियों ने भाववाचक संज्ञाओं को भी बालंबन के रूप में अपना लिया है । अरूप को रूप देना साधारण कवि-कौशल ही नहीं। प्रसाद और पंत ने तो इस कला को पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया है। वेदना, सौन्दय, लज्जा, स्वप्न श्रादि विषय ऐसे ही हैं। सौन्दर्य-वर्णन का एक उदाहरण लीजिये- तुम कनक किरण के अन्तराल में लुक-छिपकर चलते हो क्यों ? नतमस्तक गर्व वहन करते यौवन के धन रस कन ढरते . हे लाज भरे सौन्दर्य बता दो मौन बने रहते हो क्यों ? अषरों के मधुर कगारों में कल-कल ध्वनि की गुजारों में मधु सरिता-सी यह हंसी तरल, अपनी पीते रहते हो क्यों ?-प्रसाद