पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पण यूथी की मीलित कलियों से अलि दे मेरी कबरी सँवार लहराती प्राती मधुर बयार ।-महादेवी ऋतु का एक उदाहरण- सौरभ को शीतल ज्वाला से फैला उर-उर में मधुर दाह । आया वसंत, भर पृथ्वी पर स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह ।-पंत चांदनी का एक उदाहरण- वह सृदु मुकुलों के मुख में भरती मोती के चुम्बन । लहरों के चल करतल में चांदी के चंचल उडुगन ।-पंत बन का एक उदाहरण- कहीं सहज तरुतले कुसुम-शय्या बनी, ऊँघ रही है पड़ी जहाँ छाया घनी । घुस धीरे से किरण लोल दल-पुञ्ज में, जगा रही है उसे हिलाकर कुञ्ज में।-गुप्त पवन और चन्द्र का एक उदाहरण- मंद मारत मलय मद से निशा का मुख चूमता है। साथ पहलू में छिपाये चन्द्र मद में झूमता है।-भट्ट दूती-यह नायक तथा नायिका की प्रशंसा करके प्रीति उत्पन्न करती है, चाटु बचनों से उनका वैमनस्य दूर करती है और संकेत-स्थान पर ले जाती है। उत्तमा, मध्यमा, अधमा तथा स्वर दूतिका के भेद से इसके चार प्रकार होते हैं। स्वयंदूतिका का उदाहरण- कहाँ विमोहिनि से जावोगी, रिक्षा मुझे झंकृत पायल से? वहाँ जहाँ बौरी अमराई–में फैली है सुरमित छाया, नहीं जगत की षम कूल से दूर पिकी ने नीड़ बनाया, जहाँ भृङ्ग का गुञ्जन करता व्यंग्य विश्व के कोलाहल पर, सूम-सूमकर मंद अनिल ने गीत जहाँ मस्ती का गाया, जहाँ पहुँचकर तन पुलकित मन हो उठते मधुस्नात शिथिल से ? कहाँ विमोहिनि ले जावोगी, रिक्षा सुझे संकृत पायल से ?-बच्चन