उद्दीपन के प्रकार आठवीं छाया उद्दीपन के प्रकार अब यह कहना आवश्यक है कि उद्दीपन विभाव विषयगत होता है और श्राश्रयगत भी। क्योंकि, उद्दीपन विभाव विभिन्न रूप के होते है। इससे दोनों प्रेमपात्रों की ओर से उद्दीपन का होना निश्चित है । एक उदाहरण- आपुस में रस में रहस बहस बनि राधिका कुञ्जविहारी। श्यामा सराहति श्याम की पागहि श्याम सराहत श्यामा की सारी। एक ही दर्पन देखि कहै तिय नीके लगो पिय प्यौ कहै प्यारी । 'देव' सुबालम बाल को बाद बिलोकि भई बलि मैं बलिहारी।-देव इसमें दोनों का एक ही दर्पण में देखना और दोनों का यह कथन कि प्रिय तुम भले मालूम होते हो और प्रिय का राधिका को प्यारी कहना उद्दीपन विभाव है। दोनों के प्रिय सम्बोधन अनुभाव की श्रेणी में जा सकते है; पर यहां इनसे रति उद्दीपित होती है। इससे ये उद्दीपन हो है । यहां दोनों की चेष्टाएँ उद्दीपन का काम करती हैं। पाग और सारी की सराहना अनुभाव है। उहीपन विभाव के दो भेद होते हैं। एक विषयगत और दूसरा बहिर्गत । इन्हें पात्रस्थ और वाह्य भी कह सकते हैं। पात्रगत उद्दीपन पात्र के गुण, पात्र को चेष्टाएँ-हाव-भाव आदि और पात्र के अलंकार । ऋतु, पवन, चंद्र, चांदनी, उपवन आदि वाह्य उद्दीपन विभाव हैं । एक विषयगत का उदाहरण लें- या बतियाँ छतियां लहकै बहकै विरहागिन की उर ऑचे । वा बँसुरी को परो रसुरी इन फानन मोहिनी मंत्र-सी माचें ॥ को लगि ध्यान धरै मुनि लौ रहियो कहिये गुन वेद सो बाँचें । सूझत नाहिं न आन कळू निसि द्यौस वई अँखियान में नॉचें।-देव वियोगिनी ब्रजबाला की रति के श्रालंबन श्रीकृष्ण के प्रति यह उक्ति है। यहां मोहन का मुरली टेरना ( चेष्टा ) है । चेष्टाएँ अनेक प्रकार की होती है। वेद का-सा गुणानुवाद करना (गुण) अनुभाव है, पर श्रालंबन के गुण ही ऐसे हैं, जो भूलते नहीं और उद्दीपन का काम करते हैं । कृष्ण का आँखों में नाचना है (रूप)। रूपन भूलने का कारण कृष्ण की मनमोहनी मत्ति ही है, जिसका अलंकृत होना सूचित होता है। चेष्टा, रूप और गुण ये तीनों बाते इसमें हैं, जो उद्दीपन का काम करती है। १ उद्दीपन तदुत्कर्षहेतुस्ततु चतुर्विधम् । आलंबनगुणश्चैव तच्चेष्टा तदलकृतिः । तटस्थश्चेति विशे याश्चतुर्थोद्दीप नक्रमाः |-साहित्यरत्नाकर
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