पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१७३

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कान्यदर्पण तेरहवीं छाया संचारी भाव और चित्तवृत्तियाँ सभी भावों का मन से सम्बन्ध है । क्योंकि भाव मन के ही विकार होते हैं। इस दृष्टि से विचार करने पर बहुत-से मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि तीसों संचारी भावों का मनोविकार से सम्बन्ध नहीं। उनके अन्धानुकरणकारी भारतीय विवेचक विद्वान् भी इसी बात को दुहराने लगे हैं। एक समालोचक का कहना है- ____"वे सब के सब ( ३३ संचारी) मनोविकार नहीं हैं। उनमें कुछ तो बुद्धि- वृत्तियाँ है और कुछ शरीर के धर्म । मरण, आलस्य, निद्रा, अपस्मार, व्याधि आदि शरीर के धर्म हैं । मति, वितक आदि बुद्धि को वृत्तियाँ हैं।" एक दूसरे विद्वान् की उक्ति है- "तैतीसों संचारियों की जांच-पड़ताल से ज्ञात होता है कि वे सदोष हैं। उनमें सभी भाव भावनास्वरूप नहीं हैं। उनमें कुछ शारीरिक अवस्थाएँ हैं; कुछ भावनाओं के भीतर तीव्रता प्रदर्शन के प्रकार हैं; कुछ प्राथमिक भावनाएँ हैं; कुछ सभिन्न भावनाएँ है और कुछ ज्ञानात्मक अवस्थाएँ हैं।"" ____ इसमें सन्देह नहीं कि 'रसविमर्श' में संचारियों का जो विभाजन है, वह मनोविज्ञानात्मक है । पर हम यह मानने को तैयार नहीं कि सभी संचारी मनोविकार नहीं या भावनाम्वरूप नहीं है और हम यह भी मानने को तैयार नहीं कि सब संचारियों को भाव कहना उपलक्षणामात्र है। हमारे कुछ प्राचार्यों ने भी ऐसे विवेचकों को ऐसा विचार करने को प्रोत्साहन दिया है। (१) दर्पणकार के मरण के लक्षण और उदाहरण ये हैं- "बाण आदि के लगने से प्राणत्याग का नाम मरण है। इसमें देह का पतन आदि होता है। उदाहरण का आशय है कि राम के बाण से आहत ताड़िका रक्तरंजित होकर यमपुरी चली गयी।" इसमें देहत्याग से मन का क्या सम्बन्ध है ? यह तो शरीर-धर्म है। मानसिक अवस्था नही, शारीरिक अवस्था है। पण्डितराज को यह बात खटकी और उन्होंने इस लक्षण द्वारा इसे सम्हाला । "रोग आदि से उत्पन्न होनेवाली जो मरण के पहले को मूर्छारूप अवस्था है उसे मरण कहते हैं !" १. मराठी रसविमर्श, पृष्ठ १२८ २. या, सभी संचारियों को स्थूल रूप से भाव कहा जाता है। ३. शराब मरणं जीव-त्यागोऽङ्गपतनादिकृत । साहित्यदर्पण