१०३ स्थायी भाव-वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसका अर्थ वासना, काम वा इच्छा ही है। आत्मरक्षण, युद्ध-प्रवृत्ति श्रादि जितनी प्रवृत्तियाँ हैं उनका मुल यही एकमात्र स्वयंप्रेरित इच्छा है। मनोऽवस्था भिन्न- भिन्न चित्तवृत्तियों का ही वाचक है। प्राच्य विद्वानों ने स्थायी भावों को ही रस को संज्ञा दी है। कारण यह है कि वही प्रधान है और अस्वादयोग्यता भी उसी में है। पर मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि भाव दो प्रकार के हैं एक प्राथमिक ( Primary ) और दूबरा संमिश्र (Complex)। संमिश्र के भी दो विशिष्ट विभाग हैं-संमिश्र ( Blended ) और साधित ( Deserved )। सहज प्रवृत्तियां और उनकी सहचर भावनाएँ प्राथमिक हैं। प्राथमिक भावना किसी सहज प्रवृत्ति से संबद्ध रहती है और उसका विशिष्ट श्रेय होता है। ___ कभी-कभी एक से अधिक परस्पर विरुद्ध वा परस्परानुकूल प्राथमिक भावनाएँ एक दूसरे के साथ मिल जाती हैं। जैसे, क्रोध एक भाव है वैसा द्वष नहीं है। क्रोध विफल होने पर द्वेष होता है। द्वेष में भय और घृणा के भी भाव रहते हैं। साधित भाव प्राथमिक भावों के ऊपर मँडरानेवाले भाव हैं। हमारे यहाँ संचारी कहलानेवाले ये ही भाव हैं। जब मन में एक स्थिर वृत्ति की स्थिति होती है तब दूसरी स्थिर वृत्ति भी बनती रहती है। जिस समय शक्तिबाणाहत लक्ष्मण के लिए राम शोकाकुल थे उस समय मेघनाद के प्रति उनका क्रोध उत्पन्न नहीं होता होगा, यह कोई नहीं कह सकता। ऐसे समय की जो स्थिर वृत्तियां होती हैं उनमें एक प्रधान रहता है और दूसरा गौण । प्राथमिक और संमिश्र भावनाएं प्रायः स्थायी संचारी जैसी हैं ; पर इनको एक विशेष बात पर ध्यान देना आवश्यक है। इससे इनका अन्तर स्पष्ट लक्षित हो जाता है। संमिश्र भावना में बुद्धि का व्यापार क्षणिक या कम होता है। पर जब यह थिर वृत्ति की अवस्था को प्राप्त होता है तब उसमें बुद्धि-व्यापार, तकशक्ति आदि मानसिक व्यापारो की अधिकता रहतो है, जिससे उसके औचित्य, सुसंगति, जीवनोपयोगिता और मर्यादा सिद्ध होती है। शकुन्तला के प्रति दुष्यन्त का प्रेमाकर्षण हुअा। यह पहले तो साधारण रूप से वैसे ही हुआ जैसे मन में अनेक भाव उठते हैं और विलीन होते हैं। परन्तु दुष्यन्त का अनुरागजनित यह विचार काम करने लगा। कहां ऋषि-कन्या और कहाँ राजपुत्र ; दोनों का विवाह कैसे संभव हो सकता ? इत्यादि । ऐसे प्रश्नों के अनन्तर यह निश्चय होना कि यह अवश्य क्षत्रिय के विवाह योग्य है। क्योंकि मेरे शुद्ध मन में इसके प्रति अनुराग हुआ है। यदि यह मेरे योग्य न होती तो मेरा मन गवाही न देता। इस प्रकार बुद्धि, तर्क आदि के व्यापार से प्रेम-भावना स्थायी रति के रूप में परिणत हुई।
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