पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२०४

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काव्यदर्पण किया कि प्रालंबन विभाव हो रस है । क्योंकि, नट जब प्रेम का अभिनय करता है तब अपने प्रेम-पात्र का ध्यान आ जाता है और उसोको बार-बार की भावना से आनन्द का अनुभव होता है। अतः, प्रेम आदि का आलंबन विभाव ही रस है। अत में यह सिद्धांत स्थिर किया गया कि 'भाव्यमानो हि रसः' अर्थात् बार-बार भावित हुआ प्रेम आदि का श्रालंबन ही रस है। पर यह बात विचारकों को पसद नहीं श्रायो। क्योकि सीता, राम, दुष्यन्त, शकुन्तला श्रादि विभाव वाह्य पदार्थ है और रस अध्यात्म, अर्थात् श्रात्मा के भीतर को वस्तु है। उसकी प्रतीति भी श्रात्मा के भीतर होती है । अतः बालंबन को रस मानना अनुपयुक्त है। ___ दूसरी बात यह कि यदि प्रेम आदि का आलंबन ही रस-रूप माना जाय तो जब वह प्रेम के प्रतिकूल चेष्टा करे वा प्रेमानुफूल चेष्टा से विरत हो तब भी वही आनन्द आना चाहिये जो प्रेमानुकूल चेष्टा के समय मिलता था; क्योकि सब अवस्थाओं में वही आलंबन समान भाव से वर्तमान रहता है। पर ऐसा नहीं होता। अतः आलंबन रस नहीं। तीसरी बात यह कि रति आदि को रस मानने से सीता, राम आदि विभाव उसके विषय वा आधार बन जाते हैं। पर, यदि आलंबन ही रस बन जायेंगे तो उनका आधार क्या होगा ? अतः विभाव रस नहीं हो सकते । इसी प्रकार किसी-किसी का कहना है कि बालंबन के कटाक्ष, अङ्गविक्षेप आदि शारीरिक चेष्टाएँ ही, जिन्हें अनुभाव कहा जाता है, रस हैं और उनका यह सोचना कि 'अनुभावस्तथा' अर्थात् बार-बार का भावित अनुसंघानित अनुभाव ही रस है, ठीक नहीं। क्योंकि यहां भी वही कारण उपस्थित होता है। आलंबन की चेष्टाएँ भी वाह्य हैं और रस अध्यात्म । कुछ लोग कहते हैं कि वाह्य चेष्टाओं को वा वाह्य पदार्थों को जाने दीजिये चित्तवृत्तियो को लीजिये। ये तो अभ्यन्तर हैं। पात्र के हृदगत भावों को यथार्थतः प्रकट करने में जो आनन्द आता है, वह न तो विभाव में है और न अनुभाव में । अतः, ये दोनों रस नहीं हैं । रस है तो आलंबन को चित्तवृत्तियां, जिन्हें संचारी भाव कहते हैं। उनका मत है कि 'व्यभिचायेव तथा परिणमति' अर्थात् प्रेम आदि के श्रालंबन वा श्राश्रय की चित्तवृत्तियां हो उस रस के रूप में परिणत होती हैं ; किन्तु चिता आदि संचारियों को भी रस मानना अनुचित है। कारण यह कि यद्यपि चे अध्यात्म हैं तथापि अचिर स्थायी हैं और अपने विरुद्ध हर्ष आदि व्यभिचारियों से वाधित हो जाते हैं । रख स्थायी वस्तु है और अवाधित भी। अतः यह मत भी त्याज्य है।