पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२२१

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१३४. काव्यदर्पणः लगता है । भोग सत्वगुण के उद्रेक से उत्पन्न आनन्द-स्वरूप होता है । यह लौकिक सुखानुभव से विलक्षण होता है। सत्व, रज और तम के उद्रक से क्रमशः सुख, दुख तथा मोह उत्पन्न होते है । सत्व का उद्रेक सत्य का उद्रेक है और उसका स्वभाव है आनन्द का प्रकाश करना । अनेक विदेशी विद्वान् साधारणीकरण के संबंध में ऐसा हो अपना अभिमत व्यक्त करते है, जिनमें एक का आशय यह है कि "भावतादात्म्य पाठक या दर्शक की उस दशा को व्यक्त करता है, जिसमें वह कुछ काल के लिए व्यक्तिगत आत्मचैतन्य खो देता है और किसी उपन्यास या नाटक के पात्र के साथ प्रात्मीयता स्थापित कर लेता है।" इसमें भावतादात्म्य इम्पैथी (empathy) शब्द के लिए आया है । यह सिपैथी (Sympathy) समानुभूति का सहोदर भाई है । समानुभूति में अनुभूति (feeling) का साथ देना पड़ता है। किंतु इम्पैथी में तन्मयता की अवस्था हो जाती है । समानुभूति में समानुभूति के पात्र तथा समानुभूति प्रदर्शक के व्यक्तित्व की पृथकता का भान होता है, पर इम्पैथी में कुछ काल के लिए दोनों का व्यक्तित्व एक हो जाता है। इसी प्रकार के भाव रिचार्ड-जैसे समालोचक, क्रोचे-जैसे दार्शनिक तथा लिप्स ( Lipps )-जैसे मनोवैज्ञानिक ने व्यक्त किये हैं। साधारणीकरण में-चित्त की एकरूपता को अवस्था में करुणात्मक वर्णन भी हमें सुखदायक प्रतीत होता है । कारण यह है कि करुणा का जो लौकिक रूप होता है वह दुखदायी होता है। पर जब लौकिक विभाव आदि से वह अलौकिक रूप धारण कर लेता है तब उससे अानन्दोपलब्धि ही होती है । यह श्रानन्द व्यक्तिगत न होकर सामाजिक सुलभ होता है । यहाँ हृदय मुक्त-भावप्रवण रहता है। इस दशा में दुःखदायक दृश्य भी, वर्णन भी रखात्मक होने के कारण आनन्ददायक ही होता है । इसका प्रमाण सहृदयों का अनुभव हो है। __साधारणीकरण का सार तत्त्व यह है कि कवि अपनी सामग्री से जो भाव उपस्थित करता है उसका अनुभव निरवच्छिन्न रूप से सामाजिक को होना। रसिकों को जो काव्यानन्द प्राप्त होता है वह आस्वादनरूप होता है, इन्द्रिय- तृप्तिकारक नहीं । सार्वजनिक होता है, वैयक्तिक नहीं ; स्वानुभवजन्य होता है, MI SEinpathy cannotes the state of the reader or spectator who shashiost for his personal self conseiousness and is identin- Eying himself with some character in the story of screen. र करुणादावपि रसे जायते यत्पर सुखम् । सचेतसामतुभवः प्रमाणं तत्र केवलम् ।। सा. दर्पण