रस और मनोविज्ञान १५५. लिए हाथी के पास ले गया। पर वह हाथी को देखते ही गोद में मुंह छिपाकर' मेरे शरीर से चिपक गया। उसका शरीर थरथर कांपने लगा। उसने कभी हाथी नहीं देखा था। उसने उसका विशालकाय, लंबी सूद, मोटे खंभे-जैसे पैर, और सूप-जैसे कान भयदायक प्रतीत हुए। उसको ये दोनों अवस्थाएं मनोवेग के ही परिणाम थीं। मनोवेग मन की वह भावात्मक उच्छ्वसित अवस्था है, जो किसी वाह्य या अान्तर प्रभाव से उत्पन्न होता है और हमारी आन्तरिक स्थिति में परिवर्तन लाकर प्रतिक्रिया उत्पन्न कर देता है। हमारे यहाँ मन के विकारो को एक ही भाव की संज्ञा दी गयी है। किन्तु पाश्चात्य विद्वानों ने इनके दो विभाग किये है-भाव और मनोवेग (feelings and emotions) फीलिग्स और इमोशन्स । भाव में सुख-दुःख को और मनोवेगों मे भय, क्रोध, विस्मय श्रादि की गणना होती है। मनोवेग या मनःक्षोभ भी सुख-दुःखात्मक होते हैं। व्यापक अर्थ मे दोनों आ जाते है। अँगरेजी में भी फोलिग्स के अन्तर्गत इमोशन्स मान लिये जाते हैं। आधुनिक मनोवैज्ञानिक इमोशन को शुद्ध फीलिग–सुखात्मक वा दुःखात्मक अनुभूति नहीं मानते। वे उसे सर्वतोभावेन मानसिक अवस्था मानते हैं। भाव- सुख-दुःखानुभूति विचारों (ideas) पर निर्भर करते हैं। विचारों में परिवर्तन होने के साथ ही भाव या इमोशन को अवस्था में भी परिवर्तन हो जाता है । हमारे मानसिक संस्थान में तीन प्रकार के अनुभव माने जाते है-(१) संवेदनात्मक या बोधमूलक अनुभव सेन्सेशन (sensation) कहलता है, जो ज्ञान से सम्बन्ध रखता है। (२) भावात्मक अनुभव फोलिग (feeling) के नाम से अभिहित है जो भावों से सम्बन्ध रखता है। (३) संकल्पात्मक या प्रेरणात्मक अनुभव कोनेशन (conation) कहा जाता है, जिसका सम्बन्ध क्रिया से रहता है। यदि कोई कुछ कहता है और उसको हम समझ लेते हैं तो वह बोधात्मक अनुभव हुआ। यदि वह कहना कुछ ऐसा हुआ, जिससे हमें प्रसन्नता हुई तो वह भावात्मक अनुभव होगा। और वह कहना कुछ ऐसा हो, जिससे हम कुछ कर गुजरने को उद्यत हो जायँ तो यह प्रेरणात्मक अनुभव होगा। दूसरे उदाहरण से भी समझ लें। किसी फूल की गध नाक में पैठो। यह संवेदन वा बोध हुआ। इस बोध' की क्रिया भी बड़ी विचित्र है। वह गंध अच्छी है या बुरी, तीव्र है या मद, सुख- दायक है वा दुःखदायक, ग्राह्य है वा अग्राह्य, घृण्य है वा अस्पृहणीय इत्यादि में से किसी का जो अनुभव होगा, वह हुआ भाव । और, उसे बुरा, अयोग्य, दुःखदायक
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