पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२७५

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रौद्र-वीर-रस-समाधानपक्ष १८६ में वासना-रूप से उत्साह भी वर्तमान रहता है जैसे कि रति श्रादि । भले ही मनो- वैज्ञानिक इसे शरीर-मन-धर्म मानें । क्रोध भी ऐसा हो स्थायी भाव है। वीर में क्रोध भाव की झलक दीख पड़ती है, वह अमर्ष संचारी का प्रभाव है। क्रोध दो प्रकार का होता है-एक पाशविक और दूसरा भावात्मक । पहले में नाश की भावना प्रबल होती है और दूसरे में भाव की प्रबलता है। पाशवी क्रोध- जैसी इसमें तीव्रता नहीं होती; क्योंकि इसमें अन्यान्य भावनाएँ भी काम करती हैं। इसे सात्विक क्रोध भी कह सकते हैं। एक तीसरा बौद्धिक क्रोध भी माना जाता है, जिससे दोनों को प्रवृत्तियां लक्षित होती हैं । ___इनपर ध्यान देकर तुलना कीजिये । क्रोध में हिताहित का विचार नहीं रहता। अन्यान्य गुणों का लोर जाता है। किन्तु, उत्साह में धीरता, प्रसन्नता आदि गुण रहते हैं। हिताहित का भी ध्यान रहता है। वोर उदार होता है और क्रोधो अनुदार । क्रोध निर्बल पर भी उबल पड़ता है, क्रोधी अयोग्य व्यक्ति पर भी रौद्र- रूप धारण कर सकता है; पर निबल पर वीरता नहीं दिखायी जा सकती। क्रोधी में प्रतिक्रिया की, बदला चुकाने की भावना प्रबल रहती है, पर वीर में नहीं। उत्साही होने के कारण वीर में क्रियात्मकता को अधिकता रहती है, पर रौद्र में क्रोधो में भय के मिश्रण से शारीरिक क्रिया-उछल-कूद, डींग हाँकना आदि अधिक देखी जाती है। क्रोध का सम्बन्ध अधिकतर वर्तमान से रहता है और उत्साह का भविष्य से । एक उदाहरण से समझिये। हे लंकेश्वर सीता दे दो स्वयं मांगते हैं हम राम । कैसे भूले नीति, विचारो बिगड़ा नहीं अभी है काम ॥ खरदूषण-त्रिशिरा-वध-गीला मेरा कहीं धनुष पर बाण ॥ यदि चढ़ि गया, समझ लो तो फिर कभी न होगा तेरा त्राण ॥-राम 'साहित्य-दर्पण' में दिये हुए युद्धवीर के उदाहरण का यह अनुवाद है। इसके प्रत्येक पद से एक-एक धनि निकलती है, जिसका वर्णन मूल पुस्तक को टौका में दिया गया है। यहां अभीष्ट केवल यह है कि इस वीर-रस में जो क्रोध श्रा गया है वह अमर्ष संचारी के रूप में है। राम-जसे धोर-वीर-गंभीर व्यक्ति के मुंह से ऐसे ही शब्द निकले हैं, जिन्होंने अपनी और रावण को मर्यादा इस पद्य में बहुत रक्खी है। यहाँ भावनात्मक क्रोध का रूप है। रौद्र में सात्विक क्रोध नहीं देखा जाता, पर उत्साह में-अमषं संचारी के रूप में क्रोध देखा जाता है। अमषं को वीर रस का स्थायी मानने में अनेक दोष दिखलाई पड़ते हैं। जो लोग यह कहते हैं कि धर्मवीर, दानवीर श्रादि का शान्त, भक्ति आदि