सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वौर-रस-सामग्री १६३ संचारी भाव-गवं, धृति, स्मृति, दया, हर्ष, मति, असूया, आग आदि । स्थायी भाव-उत्साह । प्रधानतः वीर रस के चार भेद माने गये हैं-युद्धवीर, दयावीर, धर्मवीर और दानवीर । किन्तु, वीर शब्द का जैसा प्रयोग प्रचलित है उसके अनुसार केवल युद्धवीर में ही वीर रस का प्रयोग सार्थक माना जाता है । उक्त मुख्य चार मेदों की रससामग्री भी भिन्न-भिन्न हैं। १ युद्धवीर ।-आलंबन-शत्रु, उद्दीपन-शत्रु के कार्य, अनुभाग-चौर की गर्वोक्ति, युद्ध-कौशल श्रादि । संचारी भाव-हर्ष, आवेग, औत्सुक्य, असूया आदि । २ दानवोर ।-आलंबन-याचक, दान-योग्य पात्र आदि । उद्दीपन, अन्य दाताओं के दान, दानपात्र को प्रशंसा आदि। अनुभाव-वाचक का श्रादर- सयकार श्रादि । संचारी-हर्ष, गवं आदि । ३ धर्मवीर। आलंबन-धर्मग्रन्थ के वचन आदि। उद्दीपन-धर्म-फल, प्रशंसा आदि । अनुभाव-धर्माचरण । संचारी-वृति, मति, विवोध आदि । ४ दयावीर । बालंबन-दवा के पात्र । उद्दीपन-दवापात्र को दीन-दशा आदि । अनुभाव-सान्त्वना के वास्य । संचारी-वृति, हर्ष, मति आदि । ___ इसी प्रकार अन्य वीरों के उपादानों की सत्ता पृथक-पृथक समझनी चाहिये। किन्तु, स्थायी भाव सनका एक ही रहता है। पहले जो आलंबन, उद्दीपन आदि का उल्लेख है वह प्रायः सब प्रकार के वीरों का मिभित रूप से है। उदाहरण- तोरेउ छात्र र जिमि तव प्रताप बल नाम। जो न करउँ प्रभु पद सपथ पुनि न भरौं बनु हाच ।।तुलसो जनकपुर के धनुषयज्ञ के प्रसंग पर 'वीर-विहीन मही मैं जानी' आदि वाक्य जब राजा जनक ने कहा तब लक्ष्मण ने उपयुक्त दोहा कहा। काव्यगत रस-सामग्री-(१) धनुष आलंबन विभाव है। (२) जनक की कटु उक्ति उद्दीपन विभाव है। (३) आवेश में आये हुए लक्ष्मण की उक्तियाँ अनुभाव है । (४) आवेग, औत्सुक्य, मात, वृति, गव आदि संचारी भाव हैं। (५) उत्साह स्थायी भाव है। रसिकगत रस-सामग्री-(१) लक्ष्मण आलंबन, (२) लक्ष्मण की उक्ति उद्दीपन, (३) लक्ष्मण का तोड़ने को क्रिया में हस्तलाघव का प्रदर्शन आदि अनुभाव (४) संचारी प्रायः पूर्ववत् और (५) उत्साह हो स्थायी भाव है। जब उक्त चारों सामग्रियो से स्थायी भाव पुष्ट होता है तब वीर रस व्यक्षित होता है। यहां तव प्रताप बल' उत्साह का वाधक न होकर साधक हो गया है। इस प्रकार प्रत्येक उदाहरण की सामग्री को बमभा मेना चाहिये। का. द०-१८