पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवी छाया रौद्र रस जहाँ विरोधी दल की छेड़खानी, अपमान, अपकार, गुरु-जन-निदा तथा देश और धर्म के अपमान आदि से प्रतिशोध की भावना जागृत होती है वहाँ रौद्र रस होता है। श्रालंबन-विरोधी दल के व्यक्ति । उद्दीपन-विरोधियों द्वारा किये गये अनिष्ट काम, अपकार, अपमान, कठोर वचन आदि। अनुभव-मुखमण्डल पर लाली दौड़ जाना, भौहें चढ़ाना, असं तरेरना, दांत पीसना, होंठ चबाना, हथियार उठाना, विपक्षियों को ललकारना, गर्जन-तर्जन, होनतावाचक शब्द प्रयोग आदि । खंचारी भाव-उग्रता, अमषं, चंचलता, उद्वेग, मद, असूया, भम, स्मृति, आवेग आदि। स्थायी भाव-क्रोध । निम्नलिखित व्यक्ति शीघ्र कुद्ध होते हैं-(१) भलाई के बदले बुराई पानेवाले, (२) अनाहत होनेनेवाले, (३) अपूर्ण वा अतृप्त आकांक्षावाले, (४) विरोध सहन न करनेवाले और (५ ) तिरस्कृत निधन आदमी । निम्नलिखित व्यक्ति क्रोधपात्र होते हैं-(१) हमको भूलनेवाले, (२) हमारी प्रार्थना को ठुकरानेवाले, (३) समय-समय का खयाल न कर हँसी करनेवाले, (४) हमको चिढ़ानेवाले, (५) हमारे आदणीय विषयों पर प्रश्रद्धा रखनेवाले, (६) आत्मीय होते भी सहायता न करनेवाले, (७) मतलब साधनेवाले, (८) कृतघ्नता दिखलानेवाले, (६) हमारे प्रतकूिल आचरणवाले (१०) दुख देकर सुखी होनेवाले, (११) हमारे दुख में सुखी होनेवाले (१२) जान-सुनकर हमारा अपमान होते देखनेवाले और (१३) विशिष्ट व्यक्ति के सम्मुख वा सभासमाष में तिरस्कार करनेवाले। मातु-पितहि जनि सोच बस करहि महीप किसोर । गर्भन के अर्भकवलन परसु मोर अति घोर ॥-तुलसी जनकपुर में धनुषभंग पर यह परशुराम को उक्ति है। काव्यगत रस-सामग्री-(१) कटुवचन बोलनेवाले तथा धनुष-भंग करके धनुष की महिमा पानेवाले राम-समय पालवन विभाव हैं। (२) लक्ष्मण को कटूक्ति उद्दीपन विभाव है। (३) परशुराम की वापी, मुंह पर क्रोष की