पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८३

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रौद्र रस १६७ अभिव्यक्ति, फरसे को महिमा बखानकर उसे दिखलाना अनुभाव हैं। (४) आवेग, उग्रता, असूया, मद आदि संचारी हैं। रसिकगत रस-सामग्री-(१) परशुराम आलंबन विभाव, (२) परशुगम की उक्ति उद्दीपन, (३) संचारी और (४) अनुभाव दोनों के एक से हैं। इनसे (५) क्रोध से स्थायी भाव की पुष्टि होती है, जिससे यहां रौद्र रस की व्यञ्जना होती है। श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे। - सब शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे। संसार देखे अब हमारे शत्र रण में मृत पड़े। करते हुए यह घोषणा वे हो गये उठकर खड़े ॥-गुप्त यहां रौद्र रस की व्वलना में अभिमन्यु-बध पर कौरखों का उल्लास बालंबन, श्रीकृष्ण के पूर्वोक्त वचन उद्दीपन और अजुन के वाक्य अनुभाव तथा अमर्ष, उग्रता, गर्व श्रादि संचारी हैं। अति प्यारा है तनय देख तू अपनी मा का। सुरविजयी हूँ मेघनाद मैं वीर लड़ाका ॥ मेरा तेरा युद्ध भला कैसे होवेगा? जो न भगेगा अभी समर में मर सोवेगा ।-रा० च० उ० यहाँ लक्ष्मण पालॅबन, कुम्भकर्ण का बध आदि उद्दीपन, मेघनाद का गर्जन- तर्जन, हीन वचन का कथन आदि अनुभाव हैं और अमर्ष, उग्रता आदि सचारी हैं। इनसे रौद्र रस पुष्ट हो व्यक्षित होता है । भीषम भयानक प्रकास्यो रन भूमि आनि , छाई छिति छत्रिन की गति उठि जायगी। कहै 'रतनाकर' रुधिर सो धेगी धरा, लोथनि प लोथनि की भीति उठि जायगी। जीति उठि जायगी अजीत पांड पुत्रन को , भूप दुरजोधन की भीति उठि जायगी, के तो प्रीति रीति की सुनीति उठि जायगी के , आज हरि प्रन की प्रतीति उठि जायगी। इसमे दुर्योधन-पक्ष का पराजय बालंबन, पांडवों की अपराजेयता, कृष्ण की प्रतिज्ञा उद्दीपन है। भीष्म के ये भीषण वचन अनुभाव और गर्व, अमर्ष आदि संचारी हैं।